SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाव्रताधिकार. ( २८१) प्रकारका आहार मनसे रात्रिको करे नही, करावे नही, करतेको अनुमोदे नही, एवम् वचन और कायासे गुणातां ३६ हुए इनको दिनमे ( पहिले दिनका लाया हुवा दूसरे दिन ) रात्रिम, अके. लेमें, पर्षदामे, निद्राअवस्था, और जागृत अवस्था ६ का गुणां करनेसे २१६ तणावे हुए. (७) छकाय-पृथ्वीकाय, अप्पकाय, तेउकाय, वायुकाय बनास्पतिकाय, और सकायको मनसे हणे नही, हणाधै नही, हणतेको अनुमोदे नही. एवम् वचन और कायासे गुणतां ५४ हुए जिसको दिन रात्रि आदि ६ का गुणा करनेसे ३२४ तणावे हुए. . एवम् सर्व २१६-२१६-३२४-१६२-३२४.०२१६-३२४ सब मिला कर १७८२ तणावा हुए. अब प्रसंगोपात दशवैकालिक सूत्रके छठे अध्ययनसे अठाराह स्थानक लिखते है. यथा पांच महाव्रत, तथा रात्रिभोजन, और छ काय एवं १२ अकल्पनीय वस्त्र, पात्र, मकान और चार प्रकारका आहार १३ गृहस्थके भाजनमें भोजन करना १४ गृहस्थके पलंग खाट आसन पर बैठना १५ गृहस्थके मकानपर बेठना अर्थात् अपने उतरे हुवे मकानसे अन्य गृहस्थके मकान बेठना १६ स्नान देससे या सर्वसे स्नान करना १७ नख केस रोम आदि समारना १८ इन अठाराह स्थान में से एक भी स्थानककों सेवन करनेवा. लोकों आचारसे भ्रष्ट कहा है। गाथा-दश अठ्ठय ठाणाई, जाई बालो वरजा तथ्थ अन्नयरे ठाणे, निग्गंथ ताउ भेसह ___अर्थ-दस आठ अठाराह स्थानक है उनको बालजीव विराधे या अठाराहमसे एक भी स्थान सेवे तो निग्रंथ ( साधु ) उन स्थानसे भ्रष्ट होता है. इस लिये अठाराह स्थानकी सदेव यतना करणी चाहिये. इति. सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy