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________________ ( २८० ) शीघ्रबोध भाग ४ था. वर. इन चार प्रकारके जोवोंको मनसे हणे नहीं, हणावे नहीं, Tara अनुमोदे नहीं एवम् बाराह और बाराह वचनका, तथा वाराह कायासे कुल छत्रीश हुए इनकों दिनकों, रातकों अकेले में, पर्षदा में, निद्रावस्था में, जागृत अवस्था में, ६-इन भागको ३६ के साथ गुणा करने से प्रथम महाव्रतके २१६ तणावे हुए. ( २ ) महाव्रत मृषावाद - क्रोधसे, लोभसे, हास्यसे, और भय से इस तरह चार प्रकारका झूठ मनसे बोले नहीं, बोलावे नहीं बोलतेको अनुमोदे नहीं. एवम् वचन और कायासे गुणतां ३६ हुए इनको दिन, रात्रि अकेले में, पर्षदा में, निद्रा और जागृत अवस्था, ये छै प्रकार से गुणा करने से २१६ तणावा दूसरे महाव्रत के हुए. (३) महाव्रत अदत्तादान - अल्पवस्तु, बहुतवस्तु, छोटो वस्तु, वडी वस्तु, सचित्त, ( शीष्यादि ) अचित्त, (वस्त्र पात्रादि) ये छै प्रकारकी वस्तुको किसीके विना दिये मनसे लेवे नही, लेवावे नही, और लेतेको अनुमोदे नही. एवम् मन वचन और काया से गुणाने से ५४ हुए जिसको दिन, रात्रि आदि ६ का गुणा करने से ३२४ तणावे तीसरे महाव्रतके हुए. ( ४ ) महाव्रत ब्रह्मचार्य - देवी, मनुष्यणी, और त्रीर्यचणी, के साथ मैथुन मनसे सेवे नहीं, सेवावे नहीं, सेवते की अनुमोदे नहीं. एवम् वचन और कायासे गुणातां २७ हुए जिसको दिन रात्रि आदि ६ का गुणा करनेसे १६२ तणावे चौथे महाव्रतके हुए. ( ५ ) महाव्रत परिग्रह - अल्प, बहुत, छोटा, वडा, सचित, अचित, छै प्रकार परिग्रह मनसे रखे नहीं रखा नहीं, राखतेकों अनुमोदे नहीं, एवम् वचन और कायासे गुणातां ५४ हुए जिस को दिनरात्रि आदि ६ का गुणा करनेसे ३२४ तणावे पांचवे महाव्रत हुए. ( ६ ) रात्रिभोजन - अशन, पांण, खादिम, स्वादिम, ये चार
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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