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________________ अष्टप्रवचन. ( २४१) ३ उतावला-आतुरतासे प्रतिलेखन न करे। ४ वस्त्रके आदि अन्त तक प्रतिलेखन करे। इन च्यार प्रकारको प्रतिलेखनकों दृष्टिप्रतिलेखन कहते है। ५ वरपर जीव चढ गया हो तो उसे थोडासा खंखेरे। ६ खंखेरनेसे न निकले तो रजौहरणसे पुंजे । ७ धन या शरीरकों हीलावे नहीं। ८ पत्रके शल पड जानेपर मसले नही भट न देवे। ९ स्वल्प भी वस्त्र विगर प्रतिलेखन कीया न रखे। १० ऊंचा नीचा तीरछा भित विगेरेके अटकावे नहीं। ११ प्रतिलेखन करते जीवादि दृष्टिगोचर हो तो यत्नापूर्वक परठे। १२ वस्त्रादिको झटका पटका न करे। . इनको प्रशस्त प्रतिलेखन कहते है अन्य अप्रशस्त कहते है, जलदी जलदी करे, वस्त्रकों मसले, उंचा नीचा अटकावे, भीत जमीनका साहारा लेवे, वनको झटकावे, वन इधर उधर तथा प्रतिलेखन किया हुवा-विगर किया हुवा सामिल रखे, वेदिका ठीक न करे याने एक गोडेपर दोनों हाथ रख प्रतिलेखन करे, दोनों हाथ गोडोंसे निचे रखे, दोनों हाथ गोडोंसे उंचे रखे, दोनों हाथ गोडोंके भीतर रखे, एक हाथ गोडोंके अन्दर एक बहार यह पांच वैदिक दोष है । दोनों हाथ गोडोंसे कुच्छ उंचा रखना शुद्ध है ) धनकों अति मजबुत पकडे, वस्त्रको बहुत लम्बा करे. वन जमीनसे रगडे, एक ही वख्त में संपूर्ण वस्त्रकी प्रतिलेखन करे, शरीर वस्त्रकों वारवार हलावे, पांच प्रकारके प्रमाद करता-हुधा प्रतिलेखन करे. इन बाराह प्रकारको प्रतिलेखनकों अप्रशस्त कहते है. एवं २४ प्रतिलेखन करतां शंका पडनेसे
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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