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________________ भाषाधिकार. ( २०७ ) परिभ्रमन करे वास्ते अनंत काल तक भाषा पणे द्रव्य लेही न सके एवं समु० १९ दंडक | ( १४ ) भाषाके द्रव्य कायाके योगसे ग्रहन करते हैं (१५) भाषा पुद्गल वचन के योगसे छोड़ते है एवं समु० १९ दंडक । (१६) कारण द्वार मोहनिय कर्म और अन्तराय कर्म के क्षयपशम और वचनके योगसे सत्य और व्यवहार भाषा बोली जाती है । ज्ञानावर्णिय कर्म ओर मोहनियकर्म के उदयसे तथा वचनके योग से असत्यभाषा ओर मिश्रभाषा बोली जाती है एवं १६ दंडक परन्तु केवली जो सत्य ओर व्यवहार भाषा वोलते है उनों के च्यार घातिकर्मका क्षय हुवा है वैकलेन्द्रिय एक व्यवहार भाषा संज्ञारूप बोलते है । ( १७ ) जीव सत्यभाषा पणे द्रव्य ग्रहन करते है वह सत्य भाषा बोलते है । असत्य भाषापणे द्रव्य ग्रहन करते वह असत्य भाषा बोलते है मिश्रपणे ग्रहन करनेवाले मिश्रभाषा बोले ओर व्यवहार पणे द्रव्य ग्रहन करनेवाले व्यवहार भाषा बोले एवं १६ दंडक तथा तीन वैकलेन्द्रिय व्यवहार भाषापणे द्रव्य ग्रहन करे सो व्यवहार भाषा बोले । एक वचन कि माफीक बहुवचन भी समजना भांगा १४२ (१८) वचनद्वार भाषा बोलनेवाले व्याख्यान देनेवाले वार्तालाप करनेवाले महाशयजी को निम्नलिखत वचनोंका जानपणा अवश्य करना चाहिये । ( १ ) एकवचन - रामः देवः - नृपः (२) द्विवचन - रामौ देवौ नृपौ (३) बहुवचन - रामाः देवाः नृपाः ( ४ ) त्रि वचन - नदी लक्ष्मी अम्बा रंभा रामा (५) पुरुषवचन - राजा - देवता ईश्वर भगवान्
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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