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________________ ( १९४) शीघ्रबोध भाग ३ जो. (७) भावद्वार-धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, जीवद्रव्य, कालद्रव्य. यह पांचद्रव्य अरूपी है वर्ण गन्ध रस स्पर्श रहीत है और पुद्गलद्रव्य रूपी-वर्ण गंध रस स्पर्श संयुक्त है तथा जीव शरीर संयुक्त होनेसे वह भी वर्णादि संयुक्त है परन्तु चैतन्य निजगुणापेक्षा अमूत्ति है। (८) सामान्य विशेषद्वार-सामान्यसे विशेष बलवान है जेसे सामान्य द्रव्य एक-विशेष जीवद्रव्य, अजीवद्रव्य. सामान्य धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है विशेष धर्मद्रव्यका चलन गुण है सामान्य धर्मद्रव्यका चलन गुण है विशेष चलन गुण कि अनंत अगुरु लघु पर्याय है. इसी माफीक सर्व द्रव्य में समजना। (९) निश्चय व्यवहारद्वार-निश्चय से षद्रव्य अपने अपने गुणों में प्रवृत्ति करते है और व्यवहार में धर्मद्रव्य जीवा. नीव द्रव्यकों गमनागमन समय चलन सहायता करे अधर्मद्रव्य स्थिर सहायता, आकाशद्रव्य स्थान सहायता करते है, जीव व्यवहारसे रागद्वेष में प्रवृति करते है, पुदगल द्रव्य गलन मीलन सडन पडनादि में प्रवृते, काल-जीवाजीव कि स्थितिको पुरण करे। तात्पर्य यह है कि व्यवहार में सहायक हो तो अपने गुगोंसे उसे सहायता करे अगर सहायक न हो तो भी द्रव्य अपने अपने गुणमें प्रवृति करते ही रहते है जेसे अलोक में आकाशद्रव्य है किन्तु वहां अवगाहान गुण लेने के लिये जीवाजीव सहायक नही होने पर भी अवगाहन गुण में षट्गुण हानिवृद्धि सदैव हुवा करती है इसी माफीक सब द्रव्यमे समजना। (१०) नयद्वार-धर्मास्तिकाय-एता तीन काल में नाम होने से नैगमनय धर्मास्तिकाय माने. धर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश में चलनगुण सत्ताको संग्रहनयधर्मास्ति माने. धर्मास्तिकाय के स्कन्ध देश प्रदेश रूपी विभागको व्यवहारनय धर्मास्ति
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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