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________________ षटूद्रव्य. (१९३) उसे अभव्य स्वभाव कहते है। अर्थात् भव्य कि अनेक विवस्थावों होति है और अभव्य कि विवस्था नही पलटती है। (११) वक्तव्य स्वभाव-एक द्रव्यमें अनंत वक्तव्यता है उसमें जीतनि वक्तव्यता कर सके उसे वक्तव्य स्वभाव कहते है। (१२) अवक्तव्य स्वभाव-शेष रहे हुवे गुणोंकि वक्तव्यता न हो उसे अवक्तव्य स्वभाव कहते है। (१३) परम स्वभाव-जो एक द्रव्यम गुण है वह कीसी दुसरे द्रव्य में न मीले उसे परम स्वभाव कहते है।जैसे धर्मद्रव्यमें चलनगुण द्रव्य के विशेष स्वभाव अनंते है। षद्रव्यमें धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य यह एकेक द्रव्य है और जीवद्रव्य, पुदगलद्रव्य अनते अनंते द्रव्य है कालद्रव्य वर्तमानापेक्षा एक समय है वह अनंते जीवपुद्गलोकी स्थिति पुरण कर रहा है वास्ते उपचरितनय से कालद्रव्यको भी अनंते कहते है और मूत भवि. ज्यकालके समय अनंत है परन्तु उने यहांपर द्रव्य नही माना है। (५) क्षेत्रद्वार-जीस क्षेत्र में द्रव्य रहे के द्रव्य कि क्रिया करे उसे क्षेत्र कहते है धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, जीवद्रव्य और पुद. गलद्रव्य यह च्यार द्रव्य लोक व्यापक है। आकाशद्रव्य लोका. लोक व्यापक है कालद्रव्य प्रवर्तन रूप आढाई द्विप व्यापक है और उत्पाद व्यय रूप लोकालोक व्यापक है। (६) कालद्वार-जीस समय में द्रव्य क्रिया करते है उसे काल कहते है धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य आकाशद्रव्य-द्रव्यापेक्षा आदि अन्त रहित है और गति गमनापेक्षा सादि सान्त है। पुद्गलद्रव्य द्रव्यापेक्षा आदि अन्त रहीत है द्विप्रदेशी तीन प्रदेशी या. वत् अनंत प्रदेशी अपेक्षा सादि सान्त है । कालद्रव्य-द्रव्यापेक्षा आदि अन्त रहीत है और वर्तमान समयापेक्षा सादि सान्त है। १३
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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