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________________ पा। ( १३४ ) शीघ्रबोध भाग २ जो. इन थोकडेके सर्व १५४७२ भांगा है। (१) नामबार क्रिया पांच प्रकारकि है यथा-काइया क्रिया, अधिकरणीया क्रिया, पावसिया क्रिया, परितापनिया क्रिया, पाणाइवाइया क्रिया। (२) अर्थद्वार-काइया क्रिया-अव्रतसे लागे तथा अशुभयोगोंसे लागे। अधिगरणीया क्रिया, नयाशस्त्र बनानेसे तथा पुराणा शस्त्र तैयार करानेसे । पावसिया किया-स्वात्मापर द्वेष करना, परमात्मापर द्वेष करना, उभयात्मापरं द्वेष करनासे, परितापनिया क्रिया, स्वात्माकों प्रताप उत्पन्न करना, परआत्माको प्रताप करना, उभयात्माकों प्रताप करना, पाणाइवाइया क्रियास्वात्माकी घात करना परात्माकी घात करना, उभयात्माकी घात करना । उसे प्राणातिपात कहते है. (३) सक्रियद्वार-जीव सक्रिय है या अक्रिय १ जीव सक्रिय अक्रिय दोनों प्रकारका है कारण जीव दो प्रकारके है सिद्धोंके जीव, सांसारी जीव जिस्म सिद्धोंके जीवतों अक्रिय है और संसारी जीवोंके दो भेद है-सयोगि जीव, अयोगिजीव जिस्म अयोगि चौदवे गुणस्थानवाले वह अक्रिय है शेष जीव । संयोगि वह सक्रिय है एवं नरकादि २३ दंडक संयोगि होनेसे सक्रिय है मनुष्य समुच्चय जीवकी माफीक अयोगि है वह अक्रिय है और सयोगि है वह सक्रिय है इति।। (४) क्रिया कीनसे करते है। प्राणातिपातकी क्रिया छे कायके जीवोंसे करते है. मृषावाद की क्रिया सर्व द्रव्यसे करते है। अदत्तादांनकि क्रिया लेने लायक ग्रहन करने योग्य द्रव्योंसे करते है। मैथुनकि क्रिया-भोग उपभोगमे आने योग्य द्रव्य से
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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