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________________ नवतत्त्व. ( १२९) एवं ५७ हेतु है इनोंसे कर्मबन्ध होते हैं यह सामान्य है अब वि. शेष प्रकारसे कर्मबन्धका हेतु अलग अलग कहते है। ज्ञानावणिय कर्मबन्धके छे कारण है ज्ञानका प्रातनिक (वैरी) पणा करना, अथवा ज्ञानी पुरुषोंसे प्रतनिकपणा करना, ज्ञान तथा जिनोंके पास ज्ञान सुना हो पढा हो उनका नामको बदला के दुसराका नाम बतलाना। ज्ञान पढते हुवेको अंतराय करना। ज्ञान या ज्ञानी पुरुषोंकि आशातना करना, पुस्तक पाना पाटी आदिकी आशातना करना। ज्ञान तथा ज्ञानी पुरुषोंके साथ द्वेष भाव रखना, ज्ञान पढते समय या ज्ञानी पुरुषोंपर विषमवाद तथा पढने का अभाव करना इन छे कारणों से ज्ञानावणिय कर्मबन्धता है। दर्शनावर्णीय कर्मबन्ध के छ कारण है जो कि उपर ज्ञानावर्णिय कर्मबन्ध के छे कारण बतलाया है उसी माफीक समझना. वेदनिय कर्मवन्ध के कारण इस मुजब है साता वेद. निय. असाता बेदनिय कर्म जिस्में साता वेदनिय कर्मबन्ध के छे कारण है सर्व प्राणभूत जीव सत्वकी अनुकम्पा करे दुःख न दे. शोक न करावे झुरापो न करावे, परताप न करावे. उद्विघ्न न करावे. अर्थात् सर्व जीवों को साता देवे. इन कारणों से साता वेदनियकर्म बन्धता है और सर्व प्राण भूतजीवसत्वको दुःख देवे तकलीफ दे शोक करावे झरापो करावे परतापन करावे उद्विघ्न करावे अर्थात पर जीवोंको दुःख उत्पन्न कराने से असाता वेदनियकर्म बन्धता है। ___मोहनिय कर्मबन्ध के छ कारण है तीव्र क्रोध मान माया लोभ राग द्वष दर्शन मोहनिय चारित्र मोहनिय तथा दर्शन मोहनिका बन्ध कारण जिन पूजा में विघ्न करना देव द्रव्य भक्षण करना. अरिहंतो के धर्मका अवगुण बाद बोलना इत्यादि कारणोंसे माहनिय कर्मका वन्ध होता है।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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