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________________ (१२८ ) शीघ्रबोध भाग २ जा. करना कर्म ज्ञानावर्णियादिका त्याग करना, संसारा-नरकादि गतिका त्याग करना इति त्याग ॥ इति निर्जरातरख । (८) बन्धतत्व-जीवरूपी जमीन, कर्मरूपी पत्थर रागद्वेषरूपी चुनासे मकान बनाना इसी माफीक जीवोंके शुभाशुम अध्यवसायसे कर्म पुद्गल एकत्र कर आत्माके प्रदेशोंपर बन्ध होना उसे बन्धतत्त्व कहते है. (१) प्रकृतिबन्ध-१४८ प्रकृतियोंका बन्धना. (२) स्थितिबन्ध-१४८ प्रकृतियोंकी स्थितिका बन्धना. (३) अनुभागबन्व-कर्मप्रकृति बन्धते समये रस पडना. (४) प्रदेशबन्ध-प्रदेशोंका एकत्र हो आत्मप्रदेशपर बन्ध होना. इसपर लडूका दृष्टान्त जेसे लडू नुक्ती दांनेका बनता है यह प्रकृति है वह लडू कीतने काल रहेगा वह स्थिति है यह लड्डू क्या दुगुणी सकर तीगुणी सकर चोगुणी सकरका है वह रस विपाक है वह लडू कीतने प्रदेशोंसे बना है इत्यादि. केवल प्रकृति और प्रदेश बन्ध योगोंसे होते है और स्थिति तथा अनुभागबन्ध कषायसे होते है कर्मबन्ध होनेमे मौख्य हेतु च्यार है मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय, योग जिसमें मिथ्यात्व पांच प्रकारके है अभिग्रह मिथ्यात्व. अनाभिग्रह मिथ्यात्व, संसयमिथ्यात्व, विप्रीत मिथ्यात्व, अभिनिवेस मिथ्यात्व । अव्रत-पांच इन्द्रियकि पांच अवत, छे कायाकि अव्रत छ, बारहवीमनकि अव्रत एवं १२ अव्रत । . कषाय पांचवीस-सोलह कषाय नौ नो कषाय एवं २५. : योग पंदरा. च्यार मनका, च्यार वचनका, सात कायाका
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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