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________________ शीघ्रबोध भाग २ जो. (२) इंगीतमरण, (३) पादुगमन, जिस्मै भत्तप्रत्याख्यान मरण जेसे कारणसे करे अकारण से करे, ग्रामनगरके अन्दर करे, जंगल पर्बत आदिके उपर करे, परन्तु यह अनसन सप्रतिक्रमण होते है. अर्थात् यह अनसन करनेवाले व्यावच्च करते भी है और कराते भी है कारण हो तो विहार भी कर सकते है दुसरा इंगीतमरणमें इतना विशेष है कि भूमिकाकी मर्यादा करते है उन भूमिसे आगे नही जा सके शेष भत्तप्रत्याख्यानकी माफीक. तीसरा पादुगमन अनसनमें यह विशेष है कि वह छेदा हुवा वृक्षकी डालके माफीक जीस आसन से अनसन करते है फीर उन आसनकों बदलाते नहीं है. अर्थात् काष्टकी माफीक निश्चलपणे रहते है उनों के अप्रतिक्रमण अनसन होते है यह वज्रऋषभनाराच संहननवाला ही कर सकते है इति अनसन. (२) औणोदरीतपके दो भेद है. (१) द्रव्य औणोदरी (२) भाव औणोदरी जिस्में द्रव्य औणोदरीके दो भेद है (१) औपधि औणोदरी (२) भात्त पाणी औणोदरी. औपधि औणोदरीके अनेक भेद है जेसे स्वल्पवस्त्र, स्वल्प पात्र, जीर्णवस्त्र, जीर्णपात्र, एकवख, एकपात्र, दोवस्त्र, दो पात्र इत्यादि दुसरा आहार औणोदरीके अनेक भेद है अपनि आहार खुराक हो उनके ३२ विभाग करले उनों से आठ विभागका आहार करे तो तीन भागकी औणोदरी होती है और वारहा विभागका आहार करे तो आधासे अधिक सोलहा विभागका आहार करे तो आदि० चौवीस विभागका आहार करे तो एक हीस्ताकी औणोदरी होती है अगर ३१ विभागका आहार कर एक विभाग भी कम खावे तो उमे किंचित् औणोदरी और एक विभागका ही आहार करे तो उत्कृष्ट औणोदरी हाती है अर्थात अपनी खुराकसे किसी प्रकारसे कम खाना उसे औणोदरी तप कहा जाता है।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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