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________________ १ २ ૐ ४ ३ | ४ | ५ | ६ | S m ७ ८ ८ m ५ ६ ७ ७ ८ १ ६ | ७ | ८ | १ | २ | ३ ३ ४ w ८ १ नवतत्त्व. मर्यादा हुई. इसी माफिक सम्पुर्ण तप क रने से एक प रिपाटी होती है. इसी माफिक च्यार परिपाटी स मजना. वर्गत जिसमे चोसठ कोष्टकका यंत्र करे ४०९६ पारणे होते हैं. ६ ६ ७ ७ | ८ | ८ | १ | ३ ८ १ m एक उपवास ८ पारणो दो उपवास पारणो तीन उपवास पारणो एवं १ ३ ( ११३ ) ६ ६ ७ यावत् आठ उपवास कर पा रणो करे यह प हली ओलीकी वर्गावर्गतपके १६७७७२१६ पारणेके कोष्टक ४०९६ होते है. अकरणीतपका अनेक भेद है यथा एकावलीतप, रत्नावली तप मुक्तावलीतप, कनकावलीतप, खुडियाकसिंह निकलंकतप, महासिंह निकलंक तप, भद्रतप, महाभद्रतप, सर्वतोभद्रतप, यवमध्यतप, वज्रमज्जतप, कर्मचूरतप, गुणरत्नसंवत्सरतप, आंबिल वर्द्धमानतप, तपाधिकार देखों अन्तगढसूत्र के भाषान्तर भाग १७ बा से इति स्वल्पकालकातप. यावत् जीवके तपका तीन भेद है ( १ ) भत्त प्रत्याख्यान,
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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