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________________ (११०) शीघ्रबोध भाग २ जो. करना । मनगुप्ति, वचनगुप्ति, काय गुप्ति अर्थात् मन, वचन काया को अपने कब्जे में रखना, पापारंभमें न जाने देना एवं ८ बोल. क्षुधापरिसह, पीपासापरिसह, शितपरिसह, उष्णपरिसह, दंशमंशगपरिसह, अचेल (वस्त्र ) परिमह, आरतिपरिसह, इथि (स्त्री) परिसह, चरिय (चलनेका ) परिसह, निषेध ( स्मशानोमें कायोत्सर्ग करनेसे ) शय्या परिसह ( मकानादिके अभाव) अक्रोशपरिसह, बद्धपरिसह, याचनापरिसह, अलामपरिसह, रोगपरिसह. तृणपरिसह, मैलपरिसह, सत्कारपरिसह, प्रज्ञाप. रिसह, अज्ञानपरिसह, दर्शनपरिसह एवं २२ परिसहको सहन करना समभाव रखनासे संघर होते है. क्षमासे क्रोधका नाश करे, मुक्त निर्लोभतासे ममत्वका नाश करे, अर्जवसे मायाका नाश करे, मार्दवसे मानका नाश करे, लघवसे उपाधिको नाश करे, सच्चे सत्यसे मृपावादका नाश करे, संयम से असंयमका नाश करे, तपसे पुराणे कर्मों का नाश करे, चेहये. वृद्ध मुनियोको अशनादिसे समाधि उत्पन्न करे, ब्रह्मचर्य व्रत पालके सर्व गुणोको प्राप्त करे यह दश प्रकारके मुनिका मौख्य गुण है. अनित्यभावना-भरत चक्रवर्तीने करी थी. अशरणभावना-अनाथी मुनिराजने करी थी. संसारभावमा-शालीभद्रजीने करी थी. एकत्वभावना-नमिराज ऋषिने करी थी. असारभावना-मृगापुत्र कुमरने करी थी. असूची भावना-सनत्कुमार चक्रवर्तीने करी थी. आवभावना-एलायची पुत्रने करी थी.
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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