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________________ आश्रवतत्त्व (१०९) आणवणियाक्रिया-राजादिके आदेशसे कार्य करनेसे . वेदारणीयाक्रिया-जीवाजीवके टुकडे कर देनेसे । अणाभोगक्रिया-शुन्योपयोगसे कार्य करनेसे अणवकखवतीया-बीतरागके आज्ञाका अनादर करनेसे पोग-प्रयोगक्रिया-अशुभ योगोंसे क्रिया लगती है पेज-रागक्रिया-माया लोभ कर दुसरोंको प्रेमसे ठगना दोस-वेषक्रिया-क्रोध-मानसे लगे द्वेषको बढाना समुदाणी क्रिया-अधर्मके कार्य में बहुत लोग एकत्र हो वहां सबके एकसा अध्यवसाय होनेसे सबके समुद्दाणी कर्म बन्धते है इरियावाइक्रिया-वीतराग ११-१२-१३ गुणस्थानवालोंके केवलयोगोंसे लगे-एवं २५ क्रिया इन ४२ द्वारोंसे जीवके आश्रय आते है इति आश्रवतस्य । (६) संवरतत्व-जीवरूपी तलाव कर्मरूपी नाला पुन्यपाप रूपी पाणी आते हुवेकों संवर रूपी पाटीयासे नाला बन्ध कर उन आते हुवे पाणीको रोक देना उसे संवरतत्त्व कहते है अर्थात् स्वसत्ता आत्मरमणता करनेसे आते हुवे कम रूकजा ते है उसे सेवर कहते है जिस्के सामान्य प्रकारसे २० भेद पैतीस बोलोंके अन्दर चौदवा बोलमे कह आये है अब विशेष ५७ प्रकारसे संवर हो सक्ते है वह यहांपर लिखा जाता है। इर्यासमिति-देखके चलना, भाषासमिति विचारके बोलना, एषणासमिति शुद्धाहार पाणी लेना, आदान भंडोपकरण-मर्यादा परमाणे रखना उनोंकों यत्नासे वापरणा, उच्चार पासवण जल खेल मैल परिष्टापनिकासमिति. परठन परठावण यत्नाके साथ
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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