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________________ पुन्यतत्त्व. (१०५) शरीर अंगोपांग, बन ऋषभनाराचसंहनन,समचतुत्रसंस्थान,शुभ वर्ण,शुभगंध शुभरस,शुभस्पर्श, अगुरु लघु नाम ( ज्यादा भारीभी नही ज्यादा हलका भी नही) पराघात नाम, ( बलवानकों भी पराजय करसके ) उश्वास नाम (श्वासोश्वास सुखपूर्वक ले सके) आताप नाम, ( आप शीतल होने पर भी दुसरोंपर अपना पुरा असर पाडे ) उद्योत नाम, (सूर्य कि माफीक उद्योत करने वाला हो) शुभगति (गजकी माफीक गति हो ) निर्माण नाम, ( अंगोपांग स्वस्वस्थानपर हो) प्रस नाम, बादर नाम, पर्याप्ता नाम प्रत्येक नाम, स्थिर नाम (दांत हाड मजबुत हो) शुभ नाम (नाभीके उपरका अंग सुशोभीत हो तथा हरेक कार्यमें दुनिया तारीफ करे ) सौभाग्य नाम ( सब जीवोंको प्यारा लगे और सौभाग्यको भोगवे ) सुस्वर नाम जिस्का (पंचम स्वर जेसा मधुर स्वर हो) आदेय नाम (जीनोंका वचन सब लोग माने ) यशो कीर्ति नाम-यश एक देशमें कीर्ति बहुत देशमे, देवतोंका आयुष्य, मनुष्यका आयुष्य, तीर्यचका शुभ आयुष्य, और तीर्थकर नाम, जिनके उदयसे तीन लोगों पूजनिक होते है एवं ४२ प्रकृति उदय रस विपाक आनेसे जीवको अनेक प्रकारसे आहलाद सुख देती है जिसके जरिये जीव धन धान्य शरीर कुटम्बानुकुल आदि सर्व सुख भोगवता हुवा धर्मकार्य साधन कर सके इसी वास्ते पुन्यको शास्त्रकारोंने वोलाया समान मददगार माना हुषा है इति पुन्यतत्य । (४) पापतत्वके अशुभ फल सुखपूर्वक बान्धते है. दुःख. पूर्वक भोगवते है जब जीवोंके पाप उदय होते है तब अनेक प्रकारे अनिष्ट दशा हो नरकादि गतिमें अनेक प्रकारके दुःख रस विपाकको भोगवने पडते है कारण नरकादि गतिमें भूख्य
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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