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________________ ( १०४ ) शीघ्रबोध भाग २ जो. है और सुखपूर्वक भोगयीये जाते है जब जीवके पुन्य उदय रस विपाक में आते है तब अनेक प्रकारसे इष्टपदार्थ सामग्री प्राप्त होती है उनके जरिये देवादिके पोद्गलिक सुखोका अनुभव करते है परन्तु मोक्षार्थी पुरुषों के लिये वह पुन्य भी सुवर्ण कि बेडी तुल्य है यद्यपि जीवको उच्च स्थान प्राप्त होनेमे पुन्य अवश्य सहायताभूत है जेसे कोसी पुरुषको समुद्र पार जाना है तो नौका कि आवश्यक्ता जरुर होती है इसी माफीक मोक्ष जानेवालों को पुन्यरूपी नौकाकी आवश्यक्ता है मानों पुन्यएक संसार अटवी उलंगने के लिये वोलाधाको माफीक सहायक तरीके है वह पुन्य नौ कारणों से बन्धाता है यथा (१) अन्न पुन्य-कीसीको अशानादि भोजन करानेसे। . (२) पाणी-जल प्यासोको जल पोलानेसे पुन्य होते है। (३) लेण पुन्य-मकान आदि स्थानका आश्रय देनासे । (४) सेणपुन्य-शय्या पाट पाटला आदि देनेसे पुन्य। . (५) वस्त्रपुन्य-धन कम्बल आदि के देनेसे पुन्य । (६) मनपुन्य-दुसरोंके लिये अच्छा मन रखनेसे । : (७) वचन पुन्य-दुसरोंके लिये अच्छा मधुर वचन बोलनेसे। (८) काय पुन्य-दुसरोंको व्यावञ्च या बन्दगी बजानेसे। (९) नमस्कार पुन्य-शुद्ध भावोंसे नमस्कार करनेसे। इन नौ कारणोंसे पुन्य बन्धते है वह जीव भविष्यमें उन पुन्यका फल ४२ प्रकारसे भोगवते है यथा सातावेदनी(शरीर आरोग्यतादि), अत्रीयादि उच्चगौत्र,मनुध्यगति,मनुष्यानुपूर्वी,देवगति,देवानुपूर्वी,पांचेन्द्रियजाति औदा. रोक शरीर,वैक्रय शरीर,आहारीक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर औदारीक शरीर अंगोपांग,वैक्रयशरीर अंगोपांग,आहारीक
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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