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________________ (९४) शीघ्रबोध भाग २ जा. आहासिय. वेसाणिय, नागल, हयकन्न, गयकन्न, गोंकान व्याकुलकन्न, अयंसमुहा. मेघमुहा, असमुहा, गोमुहा, आसमुहा, हत्थिमुहा, सिंहमुहा, पाग्धमुहा, आसकन्ना, हरिकन्ना, अकन्ना, कन्नपाउरणा, उक्कामुह, मेहमुहा, विज्जुमुहा, विजुदान्ता, घणदान्ता, लट्टदान्ता, गुढदान्ता, शुद्धदान्ता एवं २८ द्विपचुल हैमवन्त पर्बतकि निश्राय है इसी माफीक २८ द्विप इसी नामके सीखरी पर्वतकी निश्राय समजना एवं ५६ द्विपा है उन प्रत्येक द्विपमे युगल मनुष्य निवास करते हैं उनका शरीर आठलो धनुष्यका है पल्योपमके असंख्यातमें भागकी स्थिति है. दश प्रकारके कल्पवृक्ष उनकी मनोकामना पुरण करते हैं जहांपर असी मसी कसी राजा राणी चाकर ठाकुर कुच्छ भी नहीं ह. देखो छे आरोंके थोकडेसे विस्तार इति । अकर्मभूमियोंके ३० भेद है. पांच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु, पांच हरिवास, पांच रम्यक्वास, पांच हेमवय, पांच परणवय एवं ३० जिसमें एक देवकुरु, एक उत्तरकुरु, एक रम्यक्वास, एक हरीवास, एक हेमवय. एक एरणवय एवं ६ क्षेत्र जम्बुद्विपमे. छेसे दुगुणा बारहा क्षेत्र धातकीखंड में बारहा क्षेत्र पुष्कराई द्विप में एवं ३० भेद. वह अकर्मभूमिमें मनुष्ययुगल है वहां भी असी मसी कसी आदि कर्म नहीं है. उनोंके भी दश प्रकारके कल्पवृक्ष मनोकामना पुरण करते है ( छे आराधिकारसे देखो) कर्मभूमि मनुष्योंके पंदरा भेद है. पांच भरतक्षेत्रके मनुष्य, पांच ऐरवत, पांच महाविदेह. जिसमें एक भरत, एक ऐरवत, एक महाविदेह एवं तीन क्षेत्र जम्बुद्विपमें तीनसे दुगुणा छे क्षेत्र घातकीखंड द्विपमें है. छे क्षेत्र पुष्करार्द्ध द्विपमें है. कर्मभूमि जहांपर राजा राणी चाकर ठाकुर साधु साध्वी तथा असी मसी कसी आदिसे वैणज वैपार कर आजीविका करते हो, उसे कर्मभूमि
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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