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________________ छे आरा. ( ६३ ) दिनोंसे आहारकि इच्छा होती थी जब शरीर प्रमाणे आहार करते थे फीर आराके अन्तमें दो दीनोंसे आहारकि इच्छा होने लगी. युगल मनुष्यों के शेष छेमास आयुष्य रहता है तब उनके परभवको आयुष्य बन्ध जाता है युगल मनुष्योंका आयुष्य नोपकर्म होता है । युगलनीके एक युगल ( बच्चाबच्ची ) पेदा होते है उनकी ४९ दिन " प्रतिपालना करके युगल मनुष्यको छींक आति है और युगलनीकों उभासी आती है. बस इतनेमें वह दोनों साहमें कालधर्मको प्राप्त हों देवगतिमें चले जाते है । उन समय सिंह व्याघ्र चित्ता रीच्छ सर्प वीच्छु गौ भेंस हस्ति अभ्वादि जानवर भी होते हैं, परन्तु वह भी बडे भद्रीक प्रकृतिषाले कीसी जीवोंके साथ न वैरभाव रखते है न कीसीकों तकलीफ देते है उनकीभी गति देवतावोंकी ही होती है । युगल मनुष्य उसे कीसी काममें नहीं लेते है । उन समय न कसी मसी असी वीणज्य बैपार है न राजा प्रजा होती है वहांके मनुष्य तथा पशु स्वइच्छानुसार घूमा करते है । जेसा यह प्रथम आरा है जीसकि आदिमें जो वर्णन किया है वेसाही देवकुरू उत्तरकुरु युगलक्षेत्रका वर्णन समज लेना चाहिये । पुर्व में कीये हुवे सुकृत कर्मका उदय अनुभाग रसकों वहां पर भोगवते है । इति प्रथम भाग | पहले आरेके अन्तमें दुसरा आग प्रारंभ होते है तब अनंते वर्णगन्धरस स्पर्श संस्थान संहनन गुरुलघु अगुरुलघु पर्यायकी हानी होती है ।। दुसरा सुखम, नामका आरा तीन कोडाकोड सागरोपमका होता है जीस्का वर्णन प्रथम आगकि माफीफ समजना. इतना विशेष है कि उन मनुष्योंकि आराके आदिमें दो
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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