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________________ [५] की कोई ऐसी नीति नहीं थी कि वह उत्कृष्ट ग्रन्थों के कृतित्व को पैसे से खरीद. कर स्वयं उनका लेखक बन जाता।" ___ संगीतराम का कर्तृत्व फिर भी संगीतराज के कर्तृत्व के विषय में कुछ विचारणीय तथ्य रह जाते हैं। कुम्भा और कालसेन के बीच इस ग्रन्थ के कर्तृत्व को लेकर विद्वानों का जो मतभेद चल रहा था, उसको तो अब समाप्त ही समझना चाहिए। ग्रन्थ की जिन पाण्डुलिपियों में कुम्भा के स्थान पर कालसेन का नाम लिखा गया है उनमें भी डा० प्रेमलता शर्मा ने एक ऐसे श्लोक को उद्धृत पाया है जिसमें कुम्भकर्ण का नाम प्रच्छन्न रूप से अभिप्रेत है, परन्तु उसको उक्त पाण्डुलिपि में ज्यों का त्यों रखा गया है। उसी प्रकार प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादक ने भी पाठ्यरत्नकोश के एक इसी प्रकार के पद्य का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त अन्य शक्तिशाली तकों के आधार पर भी कालसेन के कर्तृत्व को पूर्णतया प्रसत्य ठहराया जा सकता है। फिर भी एकलिंग-माहात्म्य के कर्ता कन्ह व्यास के पक्ष में निम्नलिखित तथ्य विचारणीय हो जाते हैं१. एकलिंग-माहात्म्य में ५ ऐसे श्लोक मिलते हैं जो कि संगीतराज में भी पाये हैं । २. एकलिंग-माहात्म्य और संगीतराज की भाषा एवं शैली में साम्य देखा ... जा सकता है। ३. एकलिंग-माहात्म्य के कर्ता कन्ह व्यास ने अपने को 'मर्थदास' कहा है। इन तथ्यों के माधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि संगीतराज कुंभा की कृति न होकर कन्ह व्यास की ही कृति होगी, परन्तु इस अनुमान के मार्ग में मुख्य बाधा यह पाती है कि संगीतराज का लेखक नैतिक मोर दार्शनिक दष्टि से जिस ऊंचाई पर आसीन दिखाई पड़ता है उसको ध्यान में रखते हुए यह तो संभव हो सकता है कि वह अपने नाम और यश की चिन्ता न करे, परन्तु यह सम्भव नहीं कि पैसे के लोम में अपने कर्तुत्व को बेच दे। इसके अतिरिक्त १. संगीतराज, जिल्द १, पृ० ५६ । २. वही, पृ० ३३ । ३. देखिये, नृत्यरत्नकोश को भूमिका, पृ०४ । ४. देखिये, डॉ. प्रेमलताकृत संगीतराज की भूमिका, पृष्ठ २९-१५; प्रॉ० रसिकलाल ... परीस, प्रस्तुत ग्रम्प की भूमिका । का . . .
SR No.034222
Book TitleNrutyaratna Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkarna Nrupati
PublisherRajasthan Purattvanveshan Mandir
Publication Year1889
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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