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________________ श्लोक प्रमाणवाली यह कृति प्रकरणों में विभक्त है। ग्रेन्यकार ने अपनी अन्य कृति 'काव्यकल्पलता' में इसका उल्लेख किया है। इसमें प्राकृत पद्य भी बहुत से उदाहृत हैं । ६. छन्दोऽनुशासन-इस कृति के कर्ता नेमिपुत्र वाग्भट हैं। ग्रन्थकार ने अपने काव्यानुशासन की स्वोपज्ञ वृत्ति में इसका उल्लेख किया है तथा पत्तनभाण्डाग रीय ग्रन्थ सूची' (भा-१, पृ० ११७) में इस छन्दोऽनुशासन के अवतरण दिए हैं। १. स्वोपज्ञवत्ति-वाग्भट ने स्वयं यह वत्ति बनाई है। १०. छन्दःशास्त्र-इसके कर्ता रामविजय गणि हैं। ११. छन्दस्तत्व-अञ्चलगच्छ के धर्मनन्दन गरिण की यह रचना है और इस पर 'स्वोपज्ञ वृत्ति' भी है। १२. रत्नमञ्जूषा-छन्दोविचिति--यह अज्ञातकर्तक रचना बारह विभागों में विभक्त है और इस पर किसी ने टीका भी लिखी है ऐसा 'जिनरत्नकोश' (खण्ड १, पृ० ३२७) में उल्लेख है। १३. छन्दोऽलङ्कार-यह अज्ञातकर्तृक रचना है और इसकी किसी ने टीका भी लिखी है। १४. अजितशान्ति-छन्दोविवरण-नन्दिषेण द्वारा रचित 'अजितशान्तिस्तव' में प्रयुक्त छन्दों के लक्षणों का विचार इसमें होगा ! ऐसा अनुमान है। १५.१६-१७. गाथारत्नकोष गाथारत्नाकर तथा छन्दोरूपक-इन कृतियों का नामतः उल्लेख मिलता है। १८. पिङ्गल-सारोद्धार-यह ५२६ श्लोकप्रमाणवाली कृति पिङ्गलकृत छन्दोविषयक कृति के साररूप में होगी ! ऐसा ज्ञात होता है। १६. नन्दिताल्यवृत्ति-यह नन्दिताब्य के गाहालक्खण पर रत्नचन्द्र की संस्कृत वृत्ति है। २०. छन्दःकोशटीका-नागपुरीय तपागच्छ के रत्नशेखर सूरि ने ७४ गाथानों में प्राकृत के 'छन्दःकोश' की रचना की है उस पर राजरत्न के शिष्य चन्द्रकीर्ति ने यह टीका लिखी है। .. २१. छन्दःसुन्दर टोका -यह किसी 'छन्दःसुन्दर' नामक ग्रन्थ की टीका होगी ! ऐसा अनुमान है। इस प्रकार इन छन्दःशास्त्रीय ग्रन्थों में १८ ग्रन्थ और ३-वृत्तियाँ-टीकाएँ हैं जो जैन विद्वानों के द्वारा की गई इस शास्त्र की सेवा के लिए अपूर्वयोग मानी जाती हैं । [३-अजैन काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों पर जैन प्राचार्यों की टीकाएँ] १. काव्यावर्श टीका-प्राचार्य दण्डी के काव्यादर्श' पर द अपरनाम वादिसिंह सूरि ने यह टीका निर्मित की है । इसकी एक पाण्डुलिपि बंगलिपि में ई० सन् १७०१ की लिखी प्राप्त होती है । २. काव्यालङ्कार-वृत्ति--(१) आचार्य रुद्रट द्वारा रचित 'काव्यालङ्कार' पर इस वृत्ति की रचना थारापद्र गच्छ के शालिभद्र सूरि के शिष्य 'नमि साधु' ने ई० सन् १०६८ में की है। इनकी अन्य रचना 'पावश्यक वृत्तिचैत्यवन्दनवृत्ति' है। प्रस्तुत वृत्ति में नमिसाधु ने अपने पूर्ववर्ती किसी अन्य प्राचार्य द्वारा रचित वृत्ति का उपयोग किया है तथा अपनी वृत्ति में कतिपय ग्रन्थकार और उनके अन्यों का उल्लेख भी किया है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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