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________________ इससे यह सिद्ध है कि पहले लक्ष्य और बाद में लक्षण बने। लाक्षणिक साहित्य की परम्परा भी बहुत प्राचीन है। ईसा से ५०० वर्ष पूर्व भरत के 'नाट्यशास्त्र' में न केवल नाटकीय विधाओं के ही लक्षण हैं अपि तु रस, मलटार, छन्द आदि सभी का उसमें समावेश है। उत्तरकाल के प्राचार्यों ने विवेच्य विषयों में काव्याङ्ग के रूप में निम्न विषयों को स्थान दिया है (१) काव्य स्वरूप [काव्य लक्षण, काव्य भेद, काव्यप्रयोजन और काव्यहेतु], (२) शब्दशक्ति [अभिधा, लक्षणा, व्यञ्जना], (३) ध्वनि, (४) गुणीभूत व्यङ्गय, (५) दोष, (६) गुण, (७) रीति (८) अलङ्कार (6) नाट्यविधान, (१०) छन्द, (११) रस और (१२) नायक-नायिका-भेद । अन्य प्राचार्य साहित्यशास्त्रीय पदार्थों का विभाग इस प्रकार मानते हैं-(१) काव्य (२) शब्द, (३) अर्थ, (४) वृत्ति, (५) गुण, (६) दोष, (७) अलङ्कार, (८) रस, (६) भाव, १०) स्थायिभाव, (११) विभाव, (१२) अनुभाव और (१३), व्यभिचारी भाव ।' इस प्रकार काव्य-शास्त्र के वर्ण्य-विषय कहीं १०, कहीं १२ और कहीं १३ बतलाए हैं। परन्तु रस का अन्तर्भाव ध्वनि में और नायक-नायिका भेद का रस में किया जा सकता है। इसी प्रकार विभावादि का भी रस में अन्तर्भाव है। अतः संख्या पर कोई एक निर्णय नहीं लेना ही उपयुक्त है। उत्तर काल के प्राचार्यों ने इसी लिये काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों के प्रणयन में भिन्न-भिन्न दृष्टि अपनाई है । यथा १-कुछ आचार्यों ने नाट्य-विधान को ही स्वतन्त्र महत्त्व दिया है, २. कुछ ने केवल अलङ्कार को प्रधानता दी है, ३-कतिपय काव्य-लक्षण से प्रारम्भ कर अलङ्कारान्त विवेचन करते हैं किन्तु उसमें नायक-नायिका-निरूपण __ को स्थान नहीं देते, ४. अन्य नाट्यशास्त्रीय सभी अंगों के साथ अलङ्कारान्त विवेचन करते हैं । ५-छन्द को साथ लेकर वर्णन करने वाले प्राचार्य विरल ही हैं जब कि छन्द के विवेचक प्राचार्य अन्य विषयों को पूर्णत: छोड़ गए हैं। ६-कविशिक्षा और काव्यमीमांसा जैसे ग्रन्थों का विषय काव्यशास्त्रीय होते हए भी उपर्युक्त पद्धति से कुछ ही भिन्न है तथा ये ग्रन्थ विविध प्रकारों से कवित्व प्राप्ति और काव्य तत्त्वों की समीक्षा करते हैं। ७-कुछ प्राचार्य केवल एक अङ्ग का ही निरूपण करते हैं । ८-कतिपय प्राचार्य केवल टीका निर्माण द्वारा ही अपने प्राचार्यत्व को सिद्ध करने में सफल हए है अतः यह भी एक विरल मार्ग ही है। इस पाठ प्रकारों के माधार पर काव्यशास्त्रों के निर्माण की परम्परा अतिविस्तृत होती गई जिसकी संक्षिप्त तालिका इस प्रकार है१. नाट्य विधान मूलक प्रन्थ और ग्रन्थकार १. नाट्यशास्त्र-भरतमुनि २. दशरूपक-धनञ्जय, ३. नाठ्यलक्षण-रत्नकोश-सागरनन्दी ४. नाट्यदर्पण-रामचन्द्र तथा गुणचन्द्र ५. भावप्रकाशन-शारदातनय, ६. रसार्णवसुधाकर शिंगभूपाल । १. 'साहित्योदशः' पदार्थोद्देश-प्रथम भाग पृ० १-२, विद्यामार्तण्ड पं० सीताराम शास्त्री। हरियाणा शेखावाटी ब्रह्मचार्याश्रम, भिवानी
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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