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________________ उपोद्घात काव्यशास्त्र के आलोक में - काव्यप्रकाश, उसका टीका-साहित्य एवं प्रस्तुत टीका - एक समीक्षात्मक अनुचिन्तन कवि और काव्य 'कवि' शब्द वेदों में अनेक बार प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इस शब्द के प्रयोग अग्नि, सूर्य, सोम, मेधावी, अनुचान तथा कान्तदर्शी के अर्थों में किए गए हैं । यही शब्द 'उपनिषद् युग' में ब्रह्म का बाचक बना और कालान्तर में भी अपनी मूल धुरी के आसपास घूमनेवाले अर्थों को संवृत करता हुआ पर्याप्त प्रख्यात बन गया। आज जिस अर्थ में कवि शब्द रूढ है उसकी पूर्वभूमिका बहुत रोचक है जिसे हम संक्षेप में इस प्रकार जान सकते हैं संस्कृत व्याकरण के अनुसार वर्णनार्थक 'क' धातु से इसकी निष्पत्ति हुई है।' 'क शब्दे' और 'कुछ शब्दे' जैसे शब्दार्थक कु धातु भी इस शब्द की सिद्धि के स्रोत माने गए हैं और व्युत्पत्ति होती है 'कवते (भ्वादि), कौति (प्रदादि), कवति (तुदादि) और 'कवयतीति वा कविः' इस प्रकार व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है-वर्णन स्तुति करनेवाला= कवि । मधु'मन्तं तनूनपाझं दे बेषु' नः कवे । प्रद्या कृणुहि दीतये ॥ १।११२४ ॥ कविमग्निमुपस्तुहि सत्यधर्माणमध्यरे।' - देवममीवचातन ॥ १।१।२३ ॥ इत्यादि कहते हुए अग्नि को पहले कवि कहा है जबकि अन्यत्र 'कविक्रतु'-कवि की प्रज्ञा बतलाया है।' यही कवि 'अनूचान, स्तोता, स्तुतिगायक, अङ्गिरा, गवेषक और बृहस्पति' के रूप में व्यक्त किया गया है गणानां त्वा गणपति हवामहे कवि कवीनामुपश्रवस्तमम्' । ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत मानः शृण्वन्नतिभिः सीदसादनम् ।। १. 'कवि शब्दश्च 'कवृ वर्णनो (स्तुतौ च)' (इत्यस्य धातो: काव्यकर्मणो रूपम् । -काव्यमीमांसा-३३११३ २. 'अग्निर्होता कविक्रतुः' इत्यादि । (ऋ० १२११५)
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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