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________________ गुण, रीति और अलङ्कारों का यथार्थ मूल्य निर्धारण । ६. अपने से पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों की ज्ञातव्य अच्छाइयों का संग्रह तथा उपेक्षणीय' विषयों का परित्याग। ७. संक्षिप्त सूत्रशैली में अनेक विषयों का व्यवस्थित आकलन आदि । मम्मट की बहुमुखी प्रतिभा-पाण्डित्य द्वारा वणित अनेक विशेषताओं के कारण यह ग्रन्थ एक 'माकर'२ (खान) ग्रन्थ बन गया है तथा यह इतना अधिक सर्वमान्य जैसा और प्रमाणभूत बन गया है कि अनेक ग्रन्थकारों ने अपने ग्रन्थों में 'तदुक्तं काव्यप्रकाशे' ऐसा कह कर इसका अत्यन्त आदर करते हुए इस ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर मुद्रा (मुहर) अङ्कित की है। मम्मट की विद्वत्ता और काव्यप्रकाश का दिशासूचन ___ मम्मट केवल काव्यशास्त्र के ही ज्ञाता नहीं थे अपितु वे व्याकरण', वेदान्त, मीमांसा, न्याय, सांख्य आदि शास्त्रों के भो श्लाघनीय ज्ञाता थे। यह बात उनके मूल और टीका के विवेचन से प्रमाणित होती है। अन्य दर्शनों के विशाल ज्ञान के कारण ही रसास्वाद के स्वरूप-दर्शन में ब्रह्मरसास्वाद के साथ तुलनात्मक चर्चा की है। माया, प्रपञ्च अथवा मोक्षप्राप्ति से सम्बद्ध दिये गये उदाहरण, रसास्वाद, मितयोगिता ज्ञान, मितेतर ज्ञान की विलक्षणता, निर्विकल्प तथा निर्विकल्पक ज्ञान को सविषयक मानना अथवा नहीं ? ये सभी बातें उनके वेदान्तविषयक विशाल ज्ञान को अभिव्यक्त करती हैं। न्यायशास्त्र के भी वे अच्छे ज्ञाता थे। साथ ही मम्मट शब्द, उसका अर्थ और शक्तियों के बारे में गम्भीरता-पूर्वक प्रामाणिक विवेचन करते हैं। उन्होंने 'यत्' शब्द की 'तत्' शब्द के साथ साकांक्षता और निराकांक्षता की चर्चा की है। वहाँ उनका पाण्डित्य स्पष्ट रूप से झलक उठता है । तथा भीमसेन के उद्गारों को देखें तो उन्होंने मम्मट को 'वाग्देवतावतार' अर्थात् सरस्वती के समान कहा है। काव्यप्रकाश के मूल का स्वरूप-परिचय अब हम यहाँ तो काव्यप्रकाश का अल्प-स्वल्प अर्थात् नाममात्र का ही परिचय देते हैं। इस ग्रन्थ के दस उल्लास हैं और प्रत्येक उल्लास किसी न किसी विशिष्ट हेतु का पूरक होने से निम्नलिखित नामविषयों से अलङ्कृत है। प्रथम उल्लास-काव्य-प्रयोजन कारण स्वरूपविशेष निर्णय द्वितीय उल्लास-शब्दार्थस्वरूप-निर्णय तृतीय उल्लास-अर्थव्यञ्जकता-निर्णय लास-ध्वनि भेद-प्रभेद निरूपण १. 'नाट्यशास्त्र' काव्य का अंग होते हुए भी उसे काव्यप्रकाश में स्थान नहीं दिया गया है जबकि 'साहित्य-दर्पण' में विश्वनाथ ने स्थान दिया है। . २. देखो का०. प्र०. सू०. ७, तथा पांचवें उल्लास में महिमभट्ट के मत का खण्डन । ३. 'वैयाकरण सिद्धान्तमञ्जूषा' तो काव्यप्रकाश को प्रमाणभूत ग्रन्थ बताती है। ४. मम्मट शैवमतानुयायी तथा शवागमज्ञ थे।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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