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________________ १३२ विजयमोहन सूरीश्वर जी के प्रशिष्य श्री धर्मविजयजी महाराज (वर्तमान प्राचार्य श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी महाराज) ने आपको भागवती दीक्षा देकर मुनि श्री यशोविजयजी के नाम से अपने शिष्य के रूप में घोषित किया । इस प्रकार केवल १६ वर्ष की अवस्था में प्रापने संसार के सभी प्रलोभनों का परित्याग करके साधुअवस्था. श्रमणजीवन को स्वीकार किया। तदनन्तर पूज्य श्री गुरुदेव की छाया में रहकर आप शास्त्राभ्यास करने लगे, जिसमें प्रकरणग्रन्थ, कर्मग्रन्थ, काव्य, कोष, व्याकरण तथा प्रागमादि ग्रन्थों का उत्तम पद्धति से अध्ययन किया और अपनी विरल प्रतिभा के कारण थोड़े समय में ही जैनधर्म के एक उच्चकोटि के विद्वान् के रूप में स्थान प्राप्त किया। . बहुमुखी व्यक्तित्व एवं अपूर्व प्रतिभा आपकी सर्जन-शक्ति साहित्य को प्रदीप्त करने लगी और कुछ वर्षों में तो आपने इस क्षेत्र में चिरस्मरणीय रहें ऐसे मंगल-चिह्न अङ्कित कर दिए जिसका संक्षिप्त परिचय इस ग्रन्थ के अन्त में दिया गया है। (व्य प० १११ से १८२) आप जैन साहित्य के अतिरिक्त शिल्प, ज्योतिष, स्थापत्य, इतिहास, मन्त्रशास्त्र तथा योग-अध्यात्म के भी अच्छे ज्ञाता हैं, अत: आपकी विद्वत्ता सर्वतोमुखी है और अनेक जैन-जनेतर विद्वान्, जनसमाज के अग्रणी, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रथम श्रेणी के राजकीय अधिकारी एवं नेतृवर्ग को आकृष्ट किया है। पाप अच्छे लेखक, प्रिय वक्ता एवं उत्तम अवधानकार भी हैं। पालीताना के ठाकुर श्रीबहादुरसिंहजी, बड़ोदा की महारानी श्री शान्तिदेवी, गोंडल के युवराज, बिलखानरेश, थानादेवली-जेतपूर के दरबार आदि के साथ प्रापके वार्तालाप का प्रसंग पाया है। गुजरात के भूतपूर्व प्रधान रसिक भाई परीख, रतुभाई प्रदाणी, कान्तिलाल घीया, विजयकुमार त्रिवेदी तथा महाराष्ट्र के प्रधान श्री वानखेडे, श्री मधुकर देसाई, श्री शङ्करराव चह्वाण प्रादि तथा प्रसिद्ध देशनेता श्रीमुरारजी देसाई, श्रीयशवन्तराव चह्वाण, श्री एस. के. पाटिल, श्री गुलजारीलाल नन्दा, सुशीला नायर, मदालसा बहन, पूर्णिमा बहन पकवासा प्रादि पूज्य महाराज जी से मिले हैं तथा मापके दर्शन-समागम से प्रानन्द का अनुभव किया है। गुजरात के रविशङ्कर महाराज तथा कलकत्ता के श्रीविजय सिंह नाहर भी कई बार आपके सम्पर्क में आये हैं और अनेक प्रश्नों के बारे में प्रापसे चर्चा-विचारणाएं की हैं। राज्यपाल श्रीप्रकाश जी ने भी आपके आशीर्वाद प्राप्त किये हैं। मतिपूजक सम्प्रदाय के कतिपय प्राचार्य तथा मुनिराजों का तो आपके प्रति उत्तम कोटि का आदरभाव बना हमा ही है साथ ही अन्य सम्प्रदाय के प्राचार्य तथा साधुगण भी आपसे सम्पर्क रखने में प्रानन्द का अनुभव करते हैं। तेरापन्थ सम्प्रदाय के प्राचार्य श्रीतुलसीजी, मुनिश्री नथमलजी, नगराजजी, जशकरणजी, राकेशमुनि, रूपचन्द जी आदि के हृदय में आपने उन्नत स्थान प्राप्त किया है। स्थानकवासी सम्प्रदाय के श्री प्रानन्द ऋषि जी, श्री पुष्कर मुनिजी एवं श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री के साथ भी आपका सम्पर्क बना हुमा है और परस्पर स्नेह तथा सत्संग का आनन्द प्राप्त होता रहा है। श्री अखण्डानन्द सरस्वती जैसे सुप्रसिद्ध संन्यासीजी और वैष्णवसमाज के प्रसिद्ध गोस्वामी श्री दीक्षितजी महाराज, प्रख्यात विद्वान् काका कालेलकर आदि भी आपके समागम से पानन्दित हुए हैं। इसी प्रकार जैन समाज के विविध सम्प्रदायों में प्रमुख कार्यकर्ता सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई, साह शान्ति
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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