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________________ टीकाओं की समाज के लिये उपयोगिता ही क्या हो सकती है ? जो कि - दुर्योधं यवती तद् विजहति स्पष्टार्थमित्युक्तिभि:, स्पष्टार्थेष्वतिविस्तृति विवधति व्यर्थः समासादिकैः । प्रस्थानेऽनुपयोगिभिश्च बहुभिर्जल्पे प्रेमं तन्वते, श्रोतॄणामिति वस्तुविप्लवकृतः प्रायेण टीकाकृतः ॥' दुर्बोध्य अंश को स्पष्टार्थ कहकर छोड़ देते हैं, स्पष्टार्थ वाले अंशों को व्यर्थ के समासादि देकर फैला देते तथा प्रस्थान पर ही अनावश्यक कथन द्वारा भ्रम उत्पन्न कर देते हैं । अधिकांश टीकाओं में (चाहे उनका नाम कोई भी - भाष्यादि दिया गया हो ) निम्नलिखित पाँच बातें वश्य होती हैं जो कि व्याख्यान के लक्षण के रूप में स्वीकृत हैं -१३५ पदच्छेदः पार्थोक्तििवग्रहो वाक्ययोजना । प्राोपस्य समाधानं व्याख्यानं पञ्चलक्षरणम् ॥ इसी प्रकार टीका - रचना के प्रमुख तत्वों के बारे में अनेक टीकाकारों ने ऐसे ही और भी महत्त्वपूर्ण कथन किये हैं, जिनमें नौर - उदाहरणवर्षरणीमुचित भावनिष्कर्षिणी मशेष रस पोषिणीमखिलसूरि सन्तोषिणीम् । सकि बन्ध: इलाग्यो व्रजति शिथिलीभावमसकृद्, विचारेणाक्षिप्तो ननु भवति टीकाऽपि किमु सा । न या ग्रन्थग्रन्थिप्रकटनपटुः किन्तु तववो, द्वयं युक्तं कर्तुं प्रभवतितरां कुम्मनृपतिः ॥ ३ उदाहरण प्रस्तुति, भाव- निष्कर्षण, रसपोषण, विद्वत्तोषण तथा ग्रन्थ- ग्रन्थि- श्लथन पूर्वक तथ्य-पुरस्सरण का पूरा प्रयास अपेक्षित माना गया है । टीका पाण्डित्य और मेघा की प्रदभुत परिचायिका होती है । " शब्दज्ञान, प्रसङ्गानुकूल अर्थसंयोजना, पथ की सम्यग्धारणा, युक्तियुक्त प्रतिष्ठापना, गूढ़-गुत्थियों - शंकाधों का निराकरण, प्रचलित पाठभेदों का सन्निवेश, मूल के साथ सङ्गति, विशिष्ट स्थलों की तर्कयुक्त व्याख्या, प्राप्त एवं मान्य ग्रन्थों के उद्धरण द्वारा भर्थ की पुष्टि एवं मार्मिक शों का विश्लेषण" ये टीकाकार की सम्पदाएँ हैं जो कि उसके श्रम को सार्थक और यशस्वी बनाने में सहायक होती हैं । काव्यप्रकाश की प्रस्तुत टीका यद्यपि कुछ अंश पर ही प्राप्त है, तथापि टीकाकार श्रीउपाध्यायजी महाराज ने इसमें उपर्युक्त सम्पदानों का यथावसर पूरी प्रतिभा के साथ समावेश किया है। सत्रहवीं शती में जब यह टीका लिखी १. भोजराजकृत 'पातञ्जलयोगसूत्र' की राजवार्तिक व्याख्या, प्रारम्भांश । २. सुमतीन्द्रयति कृत 'उषाहरण - काव्य-टीका' का प्रारम्भांश । ३. महाकवि जयदेव रचित 'गीत-गोविन्द' की टीका, प्रारम्भ भाग ।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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