SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० [ ३-५ मराठी, गुजराती और कन्नड अनुवाद ] भारत की अन्य प्रादेशिक भाषाम्रों में जो भाषाएँ समृद्ध मानी जाती हैं उनमें भी काव्य प्रकाश की लोकप्रियता ने प्रसार पाया है। इस दृष्टि से निम्नलिखित अनुवाद उपलब्ध होते हैं [१] टोका ( मराठी ) - पं० अर्जुन वाडकर मंगूलकर यह विस्तृत टीका काव्यप्रकाश के कुछ भाग पर लिखी हुई है। इसका प्रकाशन सन् १९६२ में पूना (महाराष्ट्र) से 'देशमुख एण्ड कम्पनी' ने किया है । [२] मराठी अनुवाद- श्री बा० कृ० सावलापुरकर यह अनुवाद सन् १९५४ में भीमा कुलकर्णी ने नागपुर (महाराष्ट्र) से प्रकाशित किया है, जो कि इस भाषा का पहला अनुवाद कहा जा सकता है। [३] गुजराती धनुवाद स्व० श्री श्रानन्दशर बापूजी ध्रुव यह गुजराती भाषा में प्रथम अनूदित हुम्रा है। इसके लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में भी रहे हैं तथा अनेक ग्रन्थों पर मननपूर्ण साहित्य का आलेखन भी इनके द्वारा हुआ है । कालिदास के 'विक्रमोर्वशीयम्' के गुजराती अनुवाद 'पराक्रमनी प्रसादी की भूमिका में कालिदास के काल निर्धारण के लिये इन्होंने छन्द को आधार मानकर मीमांसा भी की है। [ ४ तथा ५ ] गुजराती अनुवाद डॉ० धार० सी० पारेख एवं श्री प्रार० बी० पाठक इन अनुवादों के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है। किन्तु गुजराती साहित्यकारों ने इसका निर्देश किया है । [ ६ ] कन्नड अनुवाद - डा० कृष्णमूर्ति धारवाड़ विश्वविद्यालय के संस्कृतविभागःध्यक्ष डॉ० कृष्णमूर्ति ने यह अनुवाद कन्नड़ भाषा के माध्यम से काव्यप्रकाश के अध्येताओं की सुविधाओं को ध्यान में रखकर किया है। इसका प्रकाशन भी धारवाड़ से ही हुआ है। इसमें काव्यप्रकाश में उदाहृत पद्यों का अनुवाद भी कन्नड़ पचों में किया है। ध्वन्यालोक आदि कुछ ग्रन्थों के कन्नड़ अनुवाद का श्रेय भी इन्हें प्राप्त है । इनके अतिरिक्त देश की अन्य प्रादेशिक भाषाओं में भी किसी न किसी रूप में 'काव्य - प्रकाश' ने अपना प्रकाश अवश्य ही फैलाया होगा जिसका परिचय हम प्राप्त नहीं कर पाये हैं। इसी प्रकार उपर्युक्त भाषाओं में उपरि निर्दिष्ट अनुवादों के अतिरिक्त भी अनुवाद अथवा टिप्पण हुए और हो रहे होंगे जो स्वाभाविक ही हैं । इस प्रकार महामनीषी मम्मट की अपूर्व देन के रूप में काव्य प्रकाश का सम्मान भारतीय वाङ्मय के चिन्तकों में उत्तरोत्तर बढ़ता रहा है। भारतभूमि का मानचित्र बनाकर उसमें जिन स्थानों में इस ग्रन्थ पर टीकाएँ हुई हैं उनका उल्लेख किया जाए तो एक भरा-पूरा रूप उसमें निखरा हुआ प्रतीत होगा इसमें कोई प्रत्युक्ति नही है।" १. इस सम्बन्ध में हमारा विचार है कि यथासमय एक ऐसा ग्रन्थ धाचार्य मम्मट पर तैयार करें जिसमें मम्मट के काव्य प्रकाश पर उपलब्ध टीकापरिचय के साथ ही इस पर लिखे गए लेख, विवेचन तथा विभिन्न ग्रन्थ ई हुई सामग्री का भी निर्देश हो। इसे हम अंग्रेजी ढंग की बिब्लिओग्राफी के रूप में तैयार करने का प्रयत्न कर रहे हैं । विद्वानों से निवेदन है इस सम्बन्ध में वे अपने सुझाव तथा अपेक्षित सामग्री प्रदान कर हमें अनुगृहीत करें। (सम्पादक)
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy