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________________ १०८ [२. हिन्दी अनुवाद ] राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति जनसाधारण की अभिरुचि की अभिवृद्धि को देखते हुए तथा हिन्दी को अध्यापनभाषा के रूप में स्वीकृति मिल जाने पर कुछ विद्वानों ने हिन्दी में टीका, विशद व्याख्या और भूमिका-सहित काव्यप्रकाश की समर्चा प्रारम्भ की। इस प्रवृत्ति की यह विशेषता रही है कि इसमें सम्पूर्ण ग्रन्थ को अनूदित किया है, किसी एकांश को नहीं । टीकाकारों का लक्ष्य ग्रन्थ के अर्थ को सरल तथा विशदरूप से समझाने का रहा है और शास्त्रार्थ-प्रणाली को भी यथासम्भव सुबोध बनाया गया है। [ १ ] अनुवाद- डा. हरिमङ्गल मिश्र 'काव्य-प्रकाश' को हिन्दी भाषा के माध्यम से सर्वप्रथम सुलभरूप से समाज के साहित्यरसिकों के समक्ष प्रस्तुत करने का श्रेय स्व० डॉ० मिश्र को प्राप्त है। इसमें मूल के प्रामाणिक अर्थ का सावधानी से उपस्थापन और ' टीका-टिप्पणी के विस्तार में न जाकर मम्मट के विचारों को यथावत् सरल भाषा में दिया गया है। इसका प्रकाशन हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से हा था। [ २ ] सविमर्श-शशिकला- डा. सत्यव्रत सिंह यह अनुवाद संस्कृत की भाष्य-परम्परा का पूरक है। अनुवाद के साथ दी हुई विशद टिप्पणियां पूर्ववर्ती टीकाकारों की दृष्टि से कुछ भिन्न दृष्टि को लक्ष्य में रखकर लिखी गई हैं, जिनमें मम्मट द्वारा अपने विवेचन में जिन पूर्वाचार्यों के विचारों का प्राश्रय लिया गया है उनका स्रोत-- न केवल साहित्य ग्रन्थों से अपितु अन्य व्याकरण, दर्शन आदि ग्रन्थों से भी उद्धत किया है। विषय की गम्भीरता का बोध कराने के लिए मत-मतान्तरों का विवेचन भी उत्तम है। लेखक ने 'उपोद्घात' में स्वयं लिखा है कि-' "यह 'सविमर्श शशिकला'-व्याख्या काव्यप्रकाश के अध्ययन की प्राचीन परम्परा का ही एक अनुसरण है। इसका बीज इस लेखक के हृदय में काव्यप्रकाश के अध्ययनकाल में ही जम चुका था जिसका श्रेय इस लेखक के साहित्यविद्यागुरु श्री को० अ. सुब्रह्मण्यम् अय्यर ( अध्यक्ष-संस्कृत विभाग तथा कला यिभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय) को है । जिन्होंने प्राचार्य मम्मट की काव्यालोचना-सम्बन्धी विचारधारा और समसामयिक काश्मीर की दार्शनिक और साहित्यिक गतिविधि का समन्वय निदर्शित कर काव्यप्रकाश के एक नवीन अध्ययन की प्रेरणा दी है।" डॉ. सिंह ने ७२ पृष्ठों की विस्तृत भूमिका में भी पर्याप्त मननीय विषयों की चर्चा की है। अतः यह अपनी कोटि को एक प्रकार से 'मान' टीका बन गई है। इसका प्रकाशन चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी की 'विद्याभवन संस्कृत ग्रन्थमाला-१५' में मुद्रित होकर दोतीन संस्करणों में हुआ है। [ ३ ] काव्यप्रकाश दीपिका- स्व. प्राचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमरिण संस्कृत के महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय ग्रन्थों के भाष्य-पद्धतिमूलक अनुवादकर्तामों में प्राचार्य विश्वेश्वर का स्थान
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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