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________________ कर्मविपाक ] भाषाटीकासहितः । (३३९) हरिवंशपुगण स्त्री पुरुष दाना सुनें मंगलवारका व्रत करें अथवा भागचतमें लिखे पयोव्रतको विधिपूर्वक करें, अथवा पारसनाथकी दशमीका व्रत करें ॥ १ ॥ . सर्वरोगशांति । पवित्र घरमें पवित्र मिट्टी बिछावे और कुंड मंडप बनावे. उसमें नवग्रह, दश दिक्पाल, क्षेत्रपाल, और वास्तुदेव आदिको स्थापित कर पाद्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, चंदन, धूप, दीप, फल, नैवेद्य आदिसे पूजन करे और लोहेकी चार चार अंगुलकी चार कल मंत्रितकर चारों दिशाओंमें गाड देवे, घरके चारों कोनोंमें बलिदान देवे। मंत्र यह है ॐ हांहींहूहह्रौंहः नमः श्रीशान्तये अमुकस्य गृहे शान्ति धृति कांति बुद्धिं लक्ष्मी कुरु कुरु स्वाहा । फिर इसी मंत्रसे जल के कलशको अभिमंत्रित कर सबको उसके जलसे छींटा देवे, पीछे गुरुओंको वस्त्रदान देवे, तिलक करे, दक्षिणा देवे तो सर्व रोग शांत होवें ॥ अष्टौ ज्वरा द्वादश वा कुत्रचित्पञ्चविंशतिः । वाताश्चतुरशीतिश्च गदाः क्वापि मतान्तरे॥१॥ ज्वररोग आठ प्रकारका है, अथवा १२ प्रकारकाभी है किसी आचार्यके मतसे पर्चीस प्रकारका है । वातरोग ८४ प्रकारका है, इसी प्रकार रोगसंख्या है । यह शार्ङ्गधरके प्रथमखंडमें लिखा है देखलेना चाहिये ॥ १॥ ___ अथ प्रशस्तिश्लोकाः। सूरीश्वरः प्रवरसिंहशिरोवतंसः श्रीचंद्रकीर्तिगुरुपादयुगप्रसादात् । गम्भीरचारुतरवैद्यकशास्त्र. सारं श्रीहर्षकीर्तिवरपाठक उद्दधार ॥१॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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