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(२८२) योगचिन्तामणिः। मिश्राधिकारःकोष्णं कुर्यात्राभिलेपं शूलशांतिर्भवेत्ततः॥१॥ पुष्करं शाबरं शृङ्गं कुष्ठं विश्वौषधं तथा।। उष्णोदकेन संपिष्टो लेपः शूलविनाशकृत् ॥२॥ मैनफल, कुटकी, इनको कांजीके पानीमें घोल गुनगुनीकर नाभिपर लेप करनेसे दर्द दूर होवे. पोहकर मूल, सांबरसींग, कूठ, सोंठ इनको पीसकर गरम गरम लेप करनेसे दर्द दूर होवे ॥ १-२॥
व्रण लपः। गृहधूमं च कंपिल्लं टंकणं मरिचं निशा। घृते घृष्ट्वा प्रलेपोऽयं सर्वव्रणनिवृत्तये ॥ १ ॥ तैलेन वा घृतेनैव पिष्वा चूर्ण प्रलेपयेत् । धात्रीफलानां रक्षा वा व्रणे लेप्या घृतेन सा ॥२॥ अपको यदि वा पक्को निम्वः सर्वव्रणे हितः। अपक्कं पाचयेनिम्बं पक्कं चापि विशोधयेत् ॥२॥ घरका धुआँ, कबीला, सुहागा, मिरच, हलदी इनको तेलमें अथवा धीमें पीसकर फोडे फुनसी पर लेप करनेसे फोडा फुनसी दूर होवें, आंवले की राख धीमें मिलाकर लेप करनेसे फोडा दूर होवे। नींबके पत्तोंको पीस लेप करनेसे कच्चा वा पका फोडामें हित होने और विनापकेका पकावे और पकेको शोधन करे ॥ १-३ ॥
गंडमालादौ लेपः। सर्षपाञ्छिग्रुबीजानि शणबीजातसीयवान् । मूलकस्य च बीजानि तशेणाम्लेन पेषयेत् ॥१॥ गण्डमालार्बुदं गण्डं लेपेनानेन शाम्यति ।
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