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________________ शिवारुते स्थानस्थितप्रकरणम् । (५०९) सुरक्षितस्यापि मनुष्यलक्षामस्य शीघ्र ग्रहणं विधत्ते ॥ त्रयं दिनानां दिवसावसाने शिवा रटंती परुषस्वरेण ॥७४॥ दिवारदंती सकलासु रौद्रं भ्रमत्यखिन्ना परितः पुरं चेत् ॥ शृगालजाया खलु तद्रवीति युद्धं महत्तत्र तथाभिघातम् ॥ ॥ ७९ ॥ ज्वालां विमुंचत्यतिरौद्रनादा समाकुला धावति या समंतात् ॥ रोमांचकंपौ जनयत्यकस्मात्कुच्छिवा सा युवराजपातम् ॥ ७६ ॥रोमोद्गमं या जनयत्यकस्मात्फे इत्यति क्रूररवा नराणाम् ॥ मूत्रं पुरीषं च तुरंगमाणां सा सर्वदा स्यादशिवा शिवह ॥ ७७॥ ॥टीका॥ मरक्षितस्येति ॥ दिवसावसाने परुषस्वरेण दिनानां त्रयं शिवा रटंती मनुष्यलक्षैः . सुरक्षितस्यापि ग्रामस्य शीघ्र ग्रहणं विधत्ते ग्रहं कुरुते ॥ ७४ ॥ दिवेति ॥ रौद्रेण स्वरेण शृगालजाया सकलासु दिक्षु रौदं रदंती चेत्पुरं परितः अखिन्ना भ्रमति तदा खलु तत्र महद्युद्धं तथाभिघातं च ब्रवीति ॥ ७५ ॥ ज्वालामिति ॥ या अतिरौद्रनादा ज्वाला विमुंचति या समंतात्समाकुला धावति या अकस्माद्रोमांचकंपौ जनयति सा शिवा युवराजपातं कुर्यात् ॥ ७६ ॥ रोमेति ॥ या फे इति अतिकूररवा नराणां अकस्माद्रोमोद्गमं जनयति तुरंगमाणां मूत्रं पुरीषं चाकस्माज्जनयति सा शिवा इह अशिवा न श्रेष्ठा ॥ ७७ ॥ ॥ भाषा॥ समयमें पांचदिन ताई अत्यंत फेल्कार शब्द करै तो पुरुषनकी महान् हानि होय ॥७३॥ सुरक्षित नोति ॥ दिनके अन्तमें कठोरस्वरकरके तीनदिन ताई शृगाली बोले तो लाखों मनुष्यनकरके रक्षा करोगयो होय तोभी वा ग्रामळू शीघ्रही ग्रहण करै ॥ ७४ ॥ दिस्विति ।। रौद्रस्वरकरके शृगाली सब दिशानमें बोले जो पुरके चारोंमेर दुःख विना भ्रमण करे तो महान् युद्ध और घात होय ॥ ७५ ॥ ज्वालामिति ॥ जो अतिरौद्रशब्द बोलती होय, ज्वाला मुखमंसू निकासती होय, जो चारोंमेर आकुल होय, भागती होय. जो भकस्मात् रोम ठाढे होय, वा कंपायमान हायँ तो वो शृगाली युवराजको पात करे ॥ ७६ ॥ रोमेति ॥ जो शृगाली फे या प्रकार अति क्रूर शब्द बोले तो मनुष्यनकू अकस्मात् रोमांचको उदय करै घोडानकू मूत्र पुरीष अकस्मात् प्रगट करै वो शृगाली श्रेष्ठ नहीं॥७७.१. Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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