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________________ (३८०) वसंतराजशाकुने-चतुर्दशो वर्गः। हेपावं मुंचति वामतो यः क्षतक्षितिर्दक्षिणपादघातैः॥ कंडूयते दक्षिणमंगभागं तुंगं तुरंगः स पदं ददाति ॥५॥ ॥इत्यश्वः॥ वामोऽतिदीर्घः स्थिरगर्दभस्य सिद्ध्यैरवो वामविचेष्टितस्य॥ पृष्ठाग्रयोदक्षिणतश्चशब्दः स्यादक्षिणं चेष्टितमप्यसिद्धय।।६॥ कण्डूयमानावितरेतरस्य स्कंधं रदैः पश्यति गर्दभौ यः॥पाथः प्रयाणे यदि वा प्रवेशे मिलत्यसौ मित्रकलत्रपुत्रैः ॥७॥ ॥ टीका ॥ तथा त्वरितगतिः गजेंद्रः राज्ञो जयं ददाति ॥४॥ ॥ इति हस्ती ॥ हेपारवमिति ॥ स तुरंगः तुंगं पदं उच्चस्थानं ददाति यो वामतः: हेपारवं चति दक्षिणपादघातैर्यः क्षतक्षितिः यो दक्षिणमंगभागं कंडूयति ॥ ५॥ ॥ इत्यश्वः॥ वाम इति ॥ स्थिरगर्दभस्य वामविचेष्टितस्यातिदीर्घः वामो रवः सिद्धै स्यात् ॥ पृष्ठाग्रयोर्दक्षिणतश्च शब्दः असिद्ध्यै स्यात् । तथा दक्षिणं चेष्टितं च ॥६॥ कंडूयेति ॥ इतरेतरस्य स्कंधं रदैः कंडूयमानौ गर्दभौ यः पाथः प्रयाणे ॥ भाषा ॥ चलै, विपरीत चलै ऐसे आचरण करवेवालो हाथी भय करै. डालियां तोडतोड खाता हो, बहुतलीद करनेवाला, ये गजभयकारक होतेहैं. इसी प्रकार यदि हस्ती कूवेको उखाडे अथवा ढूंठकू वा वृक्षके समूहकू अपनी इच्छा करके मंथन करे, वा अदृष्ट दृष्टि होय जाय, व शीघ्रगमन करै ऐसो हाथी राजाकू जय देव ॥ ४ ॥ ॥इति हस्ती॥ हेषारवमिति ॥ जो घोडा वामभागमें हिनहिनाट शब्द कर और जेमने पावके प्रहारकरके पृथ्वीकू खोदै और जेमने अंगभागकू खुजावतो होय वो घोडा ऊंचो पद वा स्थान देवै ॥ ५॥ ॥ इत्यश्वः॥ वाम इति ॥ वामभागमें स्थिर होय वामचेष्टा करतो होय अतिदीर्ध वाममें रख शब्द होय ऐसो गर्दभ सिद्धि करै. जो पीठपीछे अगाडी दक्षिणभागमें शब्द और चेष्टा ये अ. सिद्धि के लिये जाननो ॥ ६ ॥ कंडूयति ॥ जो पुरुष प्रयाण समयमें वा प्रवेशसमयमें परस्पर Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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