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________________ ( ३४२) वसंतराजशाकुने त्रयोदशो वर्गः । भौमानिनादात्वरवः परश्चेत्सुखं तदा प्रागसुखं च पश्चात् ।। क्रमं परित्यज्य यदा भवेतां दुःखं तदादौ तदनु प्रमोदः॥ ॥६५॥ आप्यस्य पश्चाद्यदि तैजसः स्यात्कृत्वा फलं तन्नियतं निहति ॥ आदौ तु जाते यदपीह तैजसे सिद्धं फालं तदहति प्रसा॥६६॥प्रागंबुनादोऽनिलजस्ततश्चेत्समीहितं तत्सहसा निहंति ॥ भयं क्षयं च द्रविणस्य तज्ज्ञास्तयोर्विपर्यासतया वदंति ॥ ६७॥ अंभोरवादुत्तरमांबरश्चेत्सुहृत्कलौ तन्मरणं प्रदिष्टम् ॥ विपर्ययात्तौ रिपुसंपराये शरीरनाशं कुरुतो नराणाम् ॥ ६८॥ ॥ टीका ॥ प्राग्धानिः पुरतोऽर्थलाभः स्यात् ॥ ६४ ॥ भौमादिति ॥ भौमानिनादात खरवः आकाशजो रवः परश्चेत्स्यात्तदा सुखं पश्चादसुख दुःखं स्यात् यदा ऋनं परित्यज्य तो भवतां तदा आदौ दुःखं तदनु पश्चात्प्रमोदः स्यात् ॥ ६५ ॥ आप्यस्येति ।। यदि आप्यस्य उदकजातस्य पश्चात्तैजसः स्यात्तदा फलं कृत्वा नियतं तनिहति ।, आदौ तु तेजसे जाते इह सिद्धं फलं प्रसह्य तदहति ॥६६॥प्रागिति॥ चेत्प्रागंबुनादः अनिलजः पश्चात्तत्समीहितमिच्छितं सहसा निहति । तयोः विपर्यासतया तज्ज्ञाः शकुनज्ञाः भयं द्रविणस्य क्षयं वदति ॥ ६७ ॥ अंभोरवादिति ॥ अंभोस्वादुत्तरं आंबरः चेत्स्यात् तदा सुहृत्कलौ तन्मरणं प्रदिष्टं विपर्ययात्तौ रिपुसंपराये ॥ भाषा॥ लाभ करे ।। १४१ भौमादिति ॥ भौमशब्दते आकाशशब्द परे हाय तो पहले सुख होष, पीछे असुख होय, और विपरीत होय तो पहले दुःन्य होय, पछि सुख होय ॥६५॥ ॥आप्यस्येति ।। आप्यशब्दके पीछे जो तैजस शब्द होय तो फलकरके फिर वा ना. शकरे और जो पहले तैजसशब्द होय पीछे आप्यशब्द होय तो सिद्धहुये फलक बलात्कार करके नाशक॥६६॥प्रागिति।।पहले जल नाद होच, और पीछे पवन नाद होय, तो हुये कार्यक् सहसा नाश करदे. जो पहले पवननाद होय पीछे जलनाद होय तो भय और द्रव्यको नाश करे ॥ ६७! अंभेरवादिति ॥ पहले जल शब्द हाय पांडे आकाश शब्द होय तो सुहृदजननमें कलह और वाको मरण होय. और पहले आकाश शब्द होय पछेि जल Aho ! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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