SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खंजनप्रकरणम् । ( २५९ ) संदर्शितेऽन्येन च खंजरीटे स्यादन्यनार्या सह संगमाय ॥ विवादलाभो हलखातभूमौ धान्यस्य राशावपि धान्यलाभः ॥ १७ ॥ भवेत्प्रभाते प्रियसंगमाय स्याद्वंधुसंगाय तथांतरिक्षे ॥ भूमौ धनायावतरन्नभःस्तः खादन्पिबन्खादनपानलब्ध्यै ॥ १८ ॥ एवं प्रकारेषु मनोरमेषु स्थानांतरेविष्टफलांतराणि ॥ इच्छानुरूपाणि ददात्यवश्यं पूर्वत्र दृष्टोऽहनि खंजरीटः ॥ १९ ॥ वल्लीदृषत्कंट किशुष्क वृक्ष दग्धास्थिशूलामृतभाजनेषु ॥ शून्यालये लोमस गेहकोणे से पलाशे सिकतासु यूपे ॥ २० ॥ ॥ टीका ॥ स्यात् ॥ १६ ॥ संदर्शित इति ॥ अन्येन संदर्शिते खंजरीटे अन्यनार्या सह संगलाभः स्यात् हलखातभूमौ दृष्टे विवादलाभः स्यात् धान्यस्य राशावपि दृष्टे धान्यलाभः स्यात् ॥ १७ ॥ भवेदिति ॥ प्रभाते दृष्टः प्रियदर्शनाय भवेत् तथांतरिक्षे गाय भवेत् भूमौ दृष्टः धनाय स्यात् नभस्तः अवतरन्खादन्भोजनपानलब्ध्यै स्यात् ॥ १८ ॥ एवमिति ॥ एवंप्रकारेषु मनोरमेषु स्थानांतरेषु पूर्वत्र अहाने दृष्टः खंजरीटः इच्छानुरूपाणि फलांतराणि अवश्यं ददाति ॥ १९ ॥ वल्लीति ॥ वल्ली व्रततिः दृषत्प्रस्तरः कंटकी कंटकाकुलः शुष्कः एवंविधो वृक्षः दग्धं ज्वलितं यदस्थि शूला प्रतीता मृतं कलेवरं भाजनं मद्यप्रभृतीनामिति शेषः पश्चाद्वंद्वः तेषु तथा भाषा ।। नपै स्थित होय तो वस्त्रको लाभ करै जो नावमें दीखे तो घरको लाभ करे ॥ १६ ॥ संदशित इति ॥ जो खंजरीट और करके सहित दीखे वा औरने अपनी दृष्टियूँ दिखायो होय तो अन्य स्त्री करके संगको लाभ होय. हलकरके खोदी हुई पृथ्वीमें दीखे तो विवादको लाभ करें. धान्यकी राशिपे दीखै तो धान्यको लाभ करै ॥ १७ ॥ भवेदिति ॥ खंजन प्रभातसमय में दीखे तो अपने प्यारेको दर्शन करावे. जो अंतरिक्ष में दीखे तो बंधुको समागम करात्रे. और जो भूमिमें दीखे तो धनको लाभ करावे. और जो आकाशसूं उत्तर तो चा खातो वा जलादिक पान करतो वा भोजन करतो दीखे तो प्राप्तिके अर्थ जाननो ॥ १८ ॥ ॥ एवमिति ॥ या प्रकारके मनोरम और स्थानमें प्रथमदिवसमें दीखे तो अपनी इच्छाके योग्य फळांतर अवश्य देवे ॥ १९ ॥ वल्लीति ॥ लता पाषाणको टूक, कांटेको सूखो वृक्ष और Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy