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________________ (२१४) वसंतराजशाकुन-सप्तमो वर्गः। लाभोऽभीष्टं स्यादवश्यं ममेति प्रश्ने तारा लाभदा नैव वामा ॥कार्येऽमुष्मिन्नास्ति लाभो ममेति प्रश्ने वामा लाभदा नानुलोमा ॥३७८॥वामस्वरा दक्षिणगा निजेन संयुज्य: माना शकुनिः पुमांसम् ॥ जनेन संयोजयति प्रियण वियोजयत्युक्तविपर्ययेण ॥३७९॥ स्याद्वाणिज्ये तारया भूरिलाभो लाभाभावोवामया तत्र चस्यात् ॥तारा लब्ध्यै सेवयाद्रव्यलिप्सोर्वामा श्यामा निष्फलां वक्ति सेवाम्।।३८०॥वामारवा शोभनचेष्टिता च करोति ताराभिमतार्थलाभम् ॥ दुश्चेष्टिता दक्षिणनादिनी च वामा चकामान्विनिहति सर्वान् ॥३८॥ ॥ टीका ॥ लाभ इति ॥ ममाभीष्टो लाभः अवश्यं स्यादिति प्रश्ने तारा लाभदा भवति नैव वामा।तथा अमुष्मिन्कार्येमम लाभो नास्तीति प्रश्ने वामा लाभदा नानुलोमा॥३७८॥ वामस्वरेति ॥ वामस्वरा दक्षिणगानिजेन पुंसासंयुज्यमाना शकुनिः पुमांसं प्रियेण जनेन संयोजयति उक्तविपर्ययेण वियोजयति ॥ ३७९॥ स्यादिति ॥ वाणिज्यप्रश्ने तारया भूरिलाभो वाणिज्ये स्यात् वामया तत्र लाभाभावःस्यात् सेवाप्रश्ने सेवया द्रव्यलिप्सोः पुंसः तारा लब्ध्यै स्यात् वामाश्यामा निष्फलां सेवां वक्ति ॥३८०॥ वामारवेति ॥ वामारवां शोभनचेष्टिता वा तारा अभिमतार्थसिद्धिं करोति दुश्चेष्टिता ॥ भाषा ॥ लाभ इति ॥ मोकू अभीष्ट लाभ अवश्य होयगो ऐसा प्रश्नकरै तो तारा सुख देवे वामा होव तो नहीं कर और या कार्यमें मोकू लाभ नहीं है ऐसो प्रश्नकरै वामा लाभ देवे और अनुलोमा नहीं देवे।। ॥ ३७८ ।। वामस्वरेति ॥ वामस्वरादक्षिणमें गमनकर अपने पुरुषकरयुक्त होय तो पुरुषा प्यारे जननकरसंयोग करावे और दक्षिणस्वरा वामा होय तो निजजननको वियोग करावे ॥ ॥ ३७९ ॥ स्यादिति ॥ जो वाणिज्यको प्रश्न होय और पोदकी तारा होय तो बहुत लाभपूर्वक वाणिज्य होय. जो वामा होय तो लाभको अभाव होय जो सेवाके प्रश्नमें सेवाकरके द्रव्यकी वाञ्छावान् पुरुषकू तारा होय तो लाभ करै. जो वामा होय तो सेवा निष्फल होय ॥ ३८० ॥ वामारवति ॥ वामारवा होय और सुंदर चेष्टाकरती होय Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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