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________________ पोदकीरुते सुखादिप्रकरणम् । (२१३) इति पोदकीरुते जीवितमरणे एकोनविंशतितमंप्रकरणम् १९॥ अथ कथ्यते शकुनिरुते सौख्यादीनि बहुनि प्रकरणमधि ॥ कृत्यैकमिदं यस्मात्तानि लघूनि द्विपथिकः ॥३७९॥ सुखावहा मैत्रि भविष्यतीति प्रकृते दक्षिणगा सुखाय ॥ दुःखात्ययो मैत्रि भविष्यतीतिप्रश्श्रेऽपि दुःखं विनिहंति सैव ॥ ॥३७६॥ केशोऽधुना मंच विनंक्ष्यतीति प्रश्रेऽनुलोमा सुखदान वामा॥ अद्यापि मे दुःखमुदेष्यतीति प्रों वितारा सुखदा न तारा ।। ३७७॥ ॥ टोका ॥ इति शत्रुजयकरमोचनादिमुकृतकारिमहोपाध्यायश्रीभानुचद्रविरचितायां वसंतराजदीकायां पोदकीरुते जीवितमरणप्रकरणमेकोनविंशतितमम् ॥ १९ ॥ ___ अथेति ॥ पूर्वप्रकरणकथनानंतरं एकप्रकरणमधिकृत्य शकुनिरुते सौख्यादीनि बहूनि कथ्यते यस्मात्तानि पूर्वोक्तानि लघूनि प्रकरणानि द्विपथिक छंदः ॥३७५ ॥ सुखावहेति॥इदं वस्तु मे मुखावहं भविष्यतीति प्रश्ने दक्षिणगा सुखाय भवति दुःखात्ययो दुःखाभावो मम भविष्यतीति प्रश्ने सैव प्रदक्षिणा दुःखं विनिहन्ति॥३७६॥ क्लेश इति ॥ अधुना मम क्लेश: मंक्ष शीघ्रं विनश्यतीति प्रश्ने अनुलोमा मुखदा भवति न वामा अद्यापि मे दुःखमुदेष्यतीति प्रश्न वितारामुखदा न तारा३७७॥ ॥ भाषा ॥ इति श्रीजटाशंकरतनयश्रीधरविरचितायां वसंतराजभाषाटीकायां पोदकीरते जीवितमरणमेकोनविंशतितमं प्रकरणम् ॥ १९ ॥ अथेति ॥ या पोदकी रुतनाम प्रकरणमें बहुतसे सौख्यादिक कहै हैं, अब पहले कहआये जे सुखादिक तेही लघुप्रकरण ॥ यह श्लोकमें द्विपथिक छंदकरके कहें हैं ॥ ३७५ ॥ सुखावहति ॥ ये वस्तु वा मैत्री मोकू सुखकी देबेवारी होयगी ऐसो प्रश्न करै. तब जो श्यामा दक्षिणमें होय तो सुख करे, और मोकू दुःखको अभाव होयगो ऐसो प्रश्नकरै तो भी प्रदक्षिणा होय तो दुःखकू दूरकरै ॥ ३७६ ॥ केश इति ॥ अब मेरो क्लेश शीघ्रही मिटैगो ऐसो प्रश्न करै तब अनुलोमा श्यामा सुखकी देबेवाली है. और, वामा सूखकू नहींदेवैहै और अभी मोकू दुःख होयगो ऐसो प्रश्न करे तो पोदकी वितारा होय तो सुख देवे. और जो तारा होय तो सुख नहीं देवे ॥ ३७७ ॥ 'Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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