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________________ ( ८ ) प्रश्न :-७. समवसरण में गणधर एवं केवली मुनि आदि किस क्रम से बैठते हैं एवं इनमें से कौन खड़े हो कर सुनते हैं । उत्तर :- वृहत्कल्प के प्रथम खण्ड में समवसरण के अधिकार में विस्तार पूर्वक इसका विवेचन किया गया है। जो इस प्रकार है :आयाहिण पुत्रमुहो, तिदिसि पडिरूवगा उ देवकया। जेट्ठगणी ऊरणो वा, दाहिणपुव्वे अदूरंमि ।। -भगवान् चैत्यवृक्ष की प्रदक्षिणा करके पूर्वाभिमुख हो, सिंहासन पर विराजते हैं एवं जिन दिशाओं में भगवान् का मुख नहीं होता है, उन तीनों दिशाओं में देवताओं द्वारा रचे गये तीर्थकरों के आकार को धारण करने वाले, सिंहासन, चामर, छत्र, एवं धर्मचक्रादि से अलंकृत प्रतिबिम्ब होते हैं। इससे चारों दिशाओं के लोगों को यह ज्ञान होता है भगवान् हमारे ही सामने विराजमान होकर धर्मोपदेश प्रदान कर रहे हैं। भगवान् के चरणों के समीप एक गणि एवं प्रथम गणधर ही होते हैं । वे गणधर पूर्वद्वार से प्रवेशकर भगवान को वन्दना करके अग्निकोण में भगवान् के समीप ही बैठते हैं एवं अन्य गणधर भी इसी प्रकार वन्दन कर प्रथम गणधर के पास अथवा पीछे बैठते हैं। शङ्का-त्रिभुवन गुरु भगवान् तीर्थङ्कर का रूप तो तीनों भुवनों में सर्वाधिक विशिष्ट अतिशायी होता है तो देवों द्वारा निर्मित प्रतिबिम्बों की प्रभु के रूप के साथ समानता होती है या असमानता? समाधान- इसके सम्बन्ध में यह प्रमाण है : Aho ! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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