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________________ ( ७ ) में से कोई भी विरति को ग्रहण करने वाला नहीं हो तो देवताओं में अवश्य ही सम्यक्त्व के ग्रहण करने वाले होते हैं।" इस प्रकार वीर प्रभु की प्रथम देशना में मनुष्यादि के आगमन एवं अनागमन पर विचार जानना चाहिये। प्रश्न :-५. समवसरण में भगवान् को वन्दन करने के लिये प्राये हुए देवों के वाहन तीसरे गढ़ की भूमि से संलग्न रहते हैं अथवा असंलग्न ? उत्तर :- समवसरण में देवों के वाहन तीसरे गढ़ की भूमि से संलग्न नहीं रहते ऐसा पाठ श्री भगवती सूत्र के तृतीय शतक के प्रथम उद्देश को वृत्ति में तामलोतापस के अधिकार में पाया है :“समवसरणे देवयानानि, भूमावलग्नानि स्युरित्यादि ।" प्रश्न :-६. समवसरण में केवली, भगवान्, तीर्थङ्कर को तीन प्रदक्षिणा करके "नमो तीर्थाय" ऐसा कहकर बैठते हैं। अतः यहाँ तीर्थ शब्द से चतुर्विध-संघ का बोध होता है अथवा प्रथम गणधर भगवान का ? उत्तर :- यहाँ तोर्थ-शब्द से प्रथम गणधर भगवान् काही बोध करना चाहिये, चतुर्विध संघ का नहीं । आचार्य श्री मलय गिरि सूरजी ने भी वृहत्कल्पवृत्ति में इस प्रकार कहा है। जिसका उल्लेख आगे आने वाले प्रश्नोत्तरों में किया गया है। इस प्रमाण से केवलो भगवान् भो वचन से गण पर भगवान् को नमस्कार करते हैं। Aho ! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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