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________________ (२५) (पृ० ३३४) “सेठ तिलोकचन्दजी ने अजमेर से शत्रुञ्जय का संघ निकाला । यह संव हजारों श्रावक, सैंकड़ों साधु-साध्वियों तथा फौज पलटन इत्यादि से सुशोभत था। इस संघ के निकालने में आपने हजारों-लाखों रुपये खर्च किये थे। उस समय शत्रुञ्जयजी के पहाड़ पर अगार-शाह पार का बहुत उपद्रव था जिससे शत्रुञ्जय की यात्रा बन्द हो गई थी। आपने ही सबसे पहले इस यात्रा को पुनः चालू किया। इसके स्मारक में आज भी उनके लूणीया वशज इस पोर के नाम की एक सफेद चादर चढ़ाते हैं । सेठ तिलोकचन्दजी लूणीया के हिम्मतरामजी तथा सुखरामजी नामक २ पुत्र हुये। इनमें सेठ हिम्मतरामजी, चांदमलजी, तथा जेठमलजी नामक ३ पुत्र हुये । इन बन्धुओं में, सेठ चांदमलजी अपने काका सुखरामजी के नाम पर दत्तक गये । सेठ चांदमलजी लूगोया के पुत्र दीवान बहादुर सेठ थानमलजा लूणीया थे।" विद्यादान आपके शिष्य प्रशिष्य तो आपके पास पढ़ते ही थे पर अन्य शाखा के यति गण भी आपके तत्वाधान में अध्ययन कर विद्वान हुये थे। जिनमें से सुमनिवर्द्धन व उमेद चन्द विशेष उल्लेखनीय हैंसुमति वद्धन श्राप जैन तत्वज्ञान के विशिष्ट ज्ञाता थे। आपकी रचनाए निम्नलिखित हैं १. समरादित्य चरित्र, संवत् १८७४ माघ सुदि १३, जयमेरु नगरे। Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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