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________________ (२४) इस संघ का वर्णन जसराज भाटने निनाणी में किया है दे० मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ इन दोनों संघवियों के विषय में प्रोसवाल जाति के इतिहास में लिखा है कि राजाराम गिडीया ( पृ० ६५३ ) " गडिया परिवार में सेठ राजा रामजी गडिया जोधपुर में बहुत नामी साहुकार हुए। इन्होंने संवत् १८७२ में मोरखां को चिट्ठा चुकाने के समय महाराजा मानसिंहजी को बहुत बडी इमदाद दी थी । तथा प्रापने शत्रुञ्जय का विशाल संघ भी निकलवाया था ।" पत्र में इनको जोधपुर निवासी और स्तवन में फलौधी निवासी लिखा है जिसका कारण यह जान पड़ता है कि इनका मूल निवास फलोधी था और व्यापार आदि जोधपुर में था । और पीछे अधिकांश वहीं रहने लगे। मंडोवर - जोधपुर में प्रापने नवीन पार्श्व जिनालय भी बनाया है और उसकी प्रतिष्ठा भी उपाध्यायजी के हाथ से ही सम्वत् १८६७ माधव को कराई थी । यह उन्हीं के रचित स्तवन से स्पष्ट है । सम्वत् १८६८ के वैशाख शुक्ला को जोधपुर में उपाध्यायजी ने प्रतिष्ठा कराई थी वह भी सम्भवतः इन्हीं के निर्मित जिनालय की होगी । यथा स्मरण इन्होंने गिरनार के पगत्थिये भी बनवाये थे जिसका शिलालेख वहां रास्ते में लगा हुआ है । संघवी तिलोकचन्दजी लूणीया आपके विषय में सवाल जाति के इतिहास में लिखा है कि Aho ! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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