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________________ (१६) प्रतिष्ठाऐं आपने अनेक जिनालय व जिन-बिम्बों को प्रतिष्ठा कराई थी उनमें कतिपय ये हैं १) सं० १८४४ वैशाख सुदी ५, अजीमगंज, संभव २) सं० १८४५ माघ सुदि ११. महिमापुर, सुविधि ३) सं० १८४७ वैशाख सुदि ५, महाजन टोली, पार्श्व ४) सं० १८४८ पाडलोपूर, स्थूलभद्र स्थान ५) सं० १८६० वैशाख सुदि ७, देवीकोट, ऋषभ ६) सं० १८६१ माघ सुदि ५, देशरणोक, सुविधि ७) सं० १८६६ माघ सुदि १३, अजमेर, संभव ८) सं. १८७१ माघ सुदि ११, बीकानेर, सुपार्श्व ६) सं० १८६८ वैशाख सुदि १२, जोधपुर, १०) सं० १८६७ माधव ६, मंडोवर, पार्श्व, आपके प्रतिष्ठित यन्त्र और पट्ट भी अनेक प्राप्त हैं। व्रत ग्रहण आपके पास अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने व्रत ग्रहण किये थे जिनमें से कुछ ये हैं१) संवत् १८३३ श्रावण सुदि ५, मन राबंदिर, पं० पुण्य धीर गणि नियम पत्र २) संवत् १८४७ मिगसर बुदि ५ , श्रावक मुलचंदादि ने आपका नित्य स्मरण करने का नियम ३) संवत् १८५० अाषाढ़ बदि १३ , श्राविका लालां बाइ Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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