SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १५६ ) पुद्गल परस्पर अनुपम से सम्बद्ध नहीं है, इसलिये उनकी अचित्त योनि होती ही है, ऐसा कहने में कोई दोष नहीं है जैसा कि श्री प्रज्ञापना सूत्रके नवम पद में कहा हैयथ:--"यद्यपि च सूक्ष्मैकेन्द्रियाः सकल लोक व्यापिनः तथापि न तत्प्रदेशैरूपपात स्थान पुद्गलः अन्योन्यानुगमेन सम्बद्धा, इति अचिता एवं तेषां योनिरिति । एवं संग्रहणी वृत्तावपि बोध्यम् । श्रीभगवती वृत्तौ दशम शतके द्वितीयोदशकेऽप्युक्त-तथाहि" सत्यपि एकेन्द्रिय सूक्ष्मजीव निकाय सम्भवे नारकदेवानां यद् उपपात क्षेत्रं तन्न केनचिज्जीवन परिगृहीतमिति अचित्ता तेषां योनिरिति ।" --यद्यपि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव सकल लोक व्यापी है तो भी उनके प्रदेशों से देव नारकों के उपपात स्थान के पुद्गल परस्पर अनुगम से सम्बद्ध नहीं है, इसलिये उनकी अचित्त योनि ही है। यही पाठ संग्रहणी वृत्ति में भी है। श्री भगवतीसूत्र की टीका में दशम शतक के द्वितीय उद्देशक में भी कहा है कि-"सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव निकाय सम्भव है, फिर भी देव एवं नारकों का जो उपपात क्षेत्र है, वह किसी भी जीव से ग्रहण किया हुआ नहीं है, इससे उनकी योनि अचित्त है। प्रश्न १२८--धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय एवं जीवास्तिकाय, इन चारों ही द्रव्यों के जो जो आठ मध्य प्रदेश हैं, वे रूचक प्रदेश कहलाते हैं। Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy