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________________ स्थान में प्रावे या जावे, खड़े रहे बैठे, अथवा परिश्रम दूर करने के लिये आराम करे, प्रतिहारिक पाट, पाटला, शय्या संस्तारक सन्थारा) जिसके पास से लिया हुअा हो उसको पुनः देवे । इस स्थान पर भगवान आर्य श्याम ने प्रतिहारिक पाट आदि पुन: देने का कहा है। इससे यह ज्ञात होता है कि अवश्य ही अन्तमुहूर्त आयुष्य शेष रहे सभी मोक्ष के सन्मुख होने के लिये आवर्जीकरणादि प्रारम्भ करते हैं, विशेष आयुष्य रहने पर नहीं। अन्यथा ये भी ग्रहण कर सकते हैं। इस दृष्टि से कुछ ऐसा कहते हैं कि जघन्य से अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट छ: छ: मास का आयुष्य शेष रहे तब समुद्घात होता है। इस बात का खण्डन समझना चाहिये। भगवान् समुद्रघात से निवृत होने के पश्चात अन्तमुहूर्त में योग निरोध करते हैं। ऐसा प्रौपपातिकोपाङ्ग वृत्ति में कहा है। प्रश्न ५८:-इस संसार में कतिपय जीव सम्यक्त्व से भ्रष्ट होने के पश्चात् संख्यात, असंख्यात एवं अनन्तकाल से पुनः सम्यक्त्वी होकर सिद्ध होते हैं और कुछ सम्यक्त्व से पतित हुए बिना ही सिद्ध हो जाते हैं। वे सब उत्कर्ष से एक समय में कितने सिद्ध हो सकते उत्तर--- जो जीव सम्यक्त्व से भ्रष्ट होकर अनन्तकाल के पश्चात् पुनः सम्यक्त्वी होते हैं, वे एक समय में एक सौ पाठ, संख्यात एवं असंख्यात काल वाले एक समय में दस दस और अपतित सम्यक्तवी एक समय Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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