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________________ अष्टमः परिच्छेदः । ण्यन्तस्य । पक्खोडइ । विकोसइ | रोमन्थे रोगाल रंगोली ॥ ४३ ॥ नामधातोर्ण्यन्तस्य । अंग्गालइ । वग्गोल | रोमन्थइ । दोले रङ्खोलः ॥ ४८ ॥ स्वार्थे ण्यन्तस्य । रङ्खोलइ । दोलइ | वेष्टेः परिआलः ॥ ५१ ॥ ण्यन्तस्य । परिआलेइ | वेढेइ । क्रियः किणो वस्तु च ॥ ५२ ॥ fers | विक्कs | विकिपर । भियां भा-वीहो ॥ ५३ ॥ i भाइ | भाइअं | वीहइ । वीहि । बहुलाधिकाराह । भीओ ॥ भालीङोऽल्ली ॥ ५४ ॥ अल्लियइ । (अल्ली अइ) अलीणो । निलीङ णिलीअ - णिलुक - णिरिग्घ-लुक- लिक्क हिक्काः ॥५५॥ णिली अइ । णिलुक्कइ । णिरिग्घर | लुक्कर | लिक्कइ | ल्हिकइ | निलिज्जइ । (णिलिजइ) विली विरा ॥ ५६ ॥ विराइ | विलिजइ । रुते रुञ्ज - सण्टो ॥ ५७ ॥ संतेः । रुञ्जइ । रुण्टइ | रवइ । शुटेर्हणः ॥ ५८ ॥ हणइ | सुणइ ॥ धूञे धुवः ॥ ५९ ॥ धुवइ | धुणइ ॥ काणेोचिताणआर ॥ ६६ ॥ १११ काणेक्षित विषयस्य कृञो णिआर इत्यादशी वा भवति । णिआरइ । काणेक्षितं करोति ॥ कृञः कुणः ॥ ६० ॥ कुणइ | करइ ॥ श्रमे वावम्फः ॥ ६८ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034209
Book TitlePrakrit Prakash Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhamah, Udayram Shastri
PublisherJay Krishnadas Gupta
Publication Year1920
Total Pages218
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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