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________________ ४२२ खण्डहरोंका वैभव कला क्या है ? I कला शब्दका व्यवहार आजकल इतना व्यापक हो गया है कि असुन्दर वस्तु एवं अकृत्यों के साथ भी जुड़ गया है । कविताकी भाँति कलाको भी व्याख्या के द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता, क्योंकि सौन्दर्य और कलाका क्षेत्र असीम है । ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसमें कला और सौन्दर्यका बोध न होता हो। कोई भी वस्तु न सुन्दर है और न असुन्दर ही । दोनों भावनिरीक्षककी रसानुभूतिपर अवलम्बित हैं। प्रत्येक व्यक्तिका दृष्टिकोण अपना होता है । जो वस्तु एकको दृष्टिसे सुन्दर है वही दूसरे की दृष्टिमें निन्द्य हो सकती है | श्रमण संस्कृतिने कला और सौन्दर्यके दार्शनिक सिद्धांतोंको अनेकान्तवाद के प्रकाश में देखा है जो वस्तुमात्रको विभिन्न दृष्टिकोणोंसे देखनेकी शक्ति और शिक्षा देता है। कलाके जितने भेद-प्रभेद हैं, उन सभीका समन्वय अनेकान्तवाद में सन्निहित है । उपकरणाश्रित सौंदर्य क्षणिक है, आत्मस्थ स्थायी । ऐसी स्थिति में सहज ही प्रश्न उठता है कि आखिर में कला कहते किसे हैं ? निश्चित परिभाषाके अभाव में भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि अन्तर के रसपूर्ण अमूर्त भावोंको बाह्य उपादान द्वारा मूर्त रूप देना ही कला है, मानव हृदयकी सूक्ष्म रसानुभूतिकी संतान ही कला है, सत्यकी अभिव्यक्ति ही कला है । इससे भी अधिक व्यापक अर्थमें कहा जाय तो जिसके द्वारा सौंदर्यका अनुभव तथा प्रकाश किया जा सके, वही कला है, जो हमारे हृदयकी कोमलतन्त्रियों को झंकृत कर सके वही कला है । इन शब्दावलियोंसे सिद्ध है कि पार्थिवआवश्यकताओं के भीतर ही कलाका जन्म होता है अर्थात् पुद्गल द्रव्यमें ही कलाका बोध हो सकता है क्योंकि वही मूर्त्त है । कला सौन्दर्यकी अपेक्षा करती है । औस्कर वाइल्डने कहा है कि जिसके साथ हमारे प्रयोजनगत कोई संबंध नहीं है वही सुन्दर है । कला सौन्दर्य- रसका कन्द है । सौंदर्य और कला भिन्न होते हुए भी दोनों में परस्पर इतनी निकटता Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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