SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८४ खण्डहरोंका वैभव गया है। पर यहाँ एक किंवदन्ती प्रचलित है जिसका सारांश यह है कि इसका सम्बन्ध राजिव नामको तेलिनसे है। राजीवलोचन मन्दिर में छोटासा मन्दिर बना है। उसमें सतीचौरा है। इसपर सूर्य, चन्द्र और कुम्भवत् दृश्य उत्कीर्ण हैं। नीचे स्त्री-पुरुष व बगलमें दासियाँ तथा बैल भी खुदे हैं। यदि तेलिनकी दन्तकथाका सम्वन्ध राजीवलोचनसे हो, तो जानना चाहिए कि वह अपने इष्टदेवके सम्मुख सती हुई थी। यहाँ पुजारी क्षत्रिय हैं। इसमें रायपुर-रश्मिके लेखकको विचित्रता मालूम हुई । मेरे खयालसे इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। बिहारके मुंगेर जिलेमें, महादेव-सिमरिया ग्राममें पुरातन शिवमन्दिरके पुजारी व पण्डे कुम्हार हैं। ___ राजिम महानदी और पैरीके ठीक संगमपर कुलेश्वर-महादेवका मन्दिर है। इसकी रचना आश्चर्यजनक है । महानदीके प्रवाहके सैकड़ों वर्षोंसे थपेड़े खाने के बाद भी मन्दिरको स्थिति ज्योंकी त्यों है । बनजारोके चौतरे___ महाकोसलमें ग्रामसे बाहर या कहीं-कहीं घनघोर वनमें एक प्रकारके चौतरे पाये जाते हैं। जो सती-चौतरोंसे सर्वथा भिन्न होते हैं। इन्हें किसीका समाधिस्थान भी नहीं मान सकते, तो फिर इन चौतरोंका सम्बन्ध किनसे होना चाहिए ? यह एक कठिन प्रश्न है, पर उपेक्षणीय नहीं। इन चौतरोंका निर्माण सामान्य कोटिके अनगढ़ पत्थरोसे हुआ करता था। उनपर सिन्दूरसे विलेपित अनगढ़ पत्थर या कोई देव-चिह्न दृष्टिगोचर होते हैं। हीरापुर निवासी वयोवृद्ध अध्यापक श्रीयुत नन्हेलालजी चौधरी द्वारा ज्ञात हुआ कि इस प्रकारके चौतरोंका सम्बन्ध, भारतके बहुत पुराने पर्यटक बनजारोंसे होना चाहिए । यांत्रिक साधनोंके अभाव-युगमें अन्तान्तीय वाणिज्य अधिकतर रायपुर रश्मि पृष्ठ ८०-८१ । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy