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________________ मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व ३८३ तुरतुरिया, खतराई आदि तन्निकटवर्ती लघु ग्रामोमें हिन्दू-संस्कृतिसे सम्बन्धित विपुल अवशेष विद्यमान हैं। यहाँपर माघ पूर्णिमाको वड़ा मेला लगता है । महन्त मंगलगिरिजी बहुत सजन व विनम्र पुरुष हैं। লিম - राजिममें राजिमलोचनका मन्दिर भी प्राचीन है, जिसमें ७ वीं और ८वीं शतीके दो लेख लगे हुए हैं। प्रथम लेखका सम्बन्ध राजा वसन्तराजसे है। यहाँ के स्तम्भोंपर दशावतार बहुत ही उत्तम रीतिसे उत्कीर्णित है । कहा जाता है कि राजा जगतपालने इसे बनवाया था। मन्दिर चपटी छतवाला होते हुए भी उतनी प्राचीनताका द्योतक नहीं। वहाँ महाराज तीवरदेवकी मुद्रासे युक्त विशाल ताम्रपत्र विद्यमान है। मन्दिरके एक स्तम्भपर चालुक्यकालीन नृवराहकी अत्यन्त सुन्दर कलापूर्ण चार हाथवाली मूर्ति उत्कीर्णित है। उसकी बायें हाथकी कोहनोपर भूदेवी दीख पड़ती है। मूर्ति-निर्माण-शास्त्रोंमें वर्णित वराह-लक्षणोंसे इस प्रतिमामें केवल इतना ही पार्थक्य है कि यहाँ आलोढासनमें अधिष्ठित आदि-शेष भगवान् अपने फनके स्थानमें दोनों हाथोंसे थामे हुए हैं। निकटवर्ती शिला पर नागकुल देख पड़ता है, जिसमें नाग अंजलिबद्ध होकर नृवराह का सम्मान कर रहे हैं। इतनी प्राचीन और इस प्रकारकी वराहको प्रतिमा प्रान्तमें अन्यत्र दुर्लभ है। ____ लचमण-देवालयसे स्वर्गीय डाक्टर हीरालालजीको एक लेख प्राप्त हुआ था जो अभी रायपुर म्पूज़ियममें सुरक्षित है। इससे ज्ञात होता है कि उपर्युक्त मन्दिर शिवगुप्त की माता 'वासटा' द्वारा निर्मित हुआ जो मगधके सूर्यवर्माकी पुत्री थी। सूर्यवर्माका समय ८वीं शती पड़ता है। अतः इस मन्दिरकी रचनाका काल भी ८वी हवीं शतीमें होना चाहिए । इस मन्दिरकी अधिकांशतः बृहत्तर मूर्तियाँ, सिरपुरसे लाई गई हैं। राजिम, राजीबका अपभ्रंश रूप जान पड़ता है। इस स्थानको पद्मक्षेत्र भी कहा Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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