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________________ मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व ३८१ लिए यही नवीन प्रतिमा लाकर रख दी हो । गर्भगृह १६॥ और मूलद्वार ७७॥x ३१ इंचका है । इस प्रकार प्रतिमाकी दृष्टि ४३वे इंचपर आती है, जो अशुभ है । मन्दिरका शिखर व सम्पूर्ण भाग इंटोंका बना हुआ है, फिर भी कला-कौशल इतने सुन्दर ढंगसे व्यक्त किया गया है कि सम्भवतः पाषाणपर भी इतना सुन्दर नहीं हो पाता । शिखर चौखुटा है। एक-एक भाग पाँच-पाँच विभागोंमें विभक्त है। सबपर लघु गुम्बज हैं । अग्रभाग बड़ा ही आकर्षक और कलाका साक्षात् अवतार-सा प्रतीत होता है । शिखरका मूलभाग पाषाणके ऊपर स्थित है। स्तम्भोंपर जो कारीगरीका काम किया गया है, वह कला-प्रेमियोंको आश्चर्यान्वित किये बिना नहीं रहता । प्राचीन कालमें दीवारकी शोभाके लिए गवाक्ष बनाना आवश्यक था। यहाँपर भी कलापूर्ण चौखट सहित त्रिकोण जालीदार गवाक्ष वर्तमान है । गुप्तकालमें इसका विशेष प्रचार था। संक्षेपमें कहा जाय तो सम्पूर्ण शिखर में जैसा सूक्ष्मातिसूक्ष्म कलात्मक काम किया गया है, वह भारतीय तक्षण-कलाके मुखको उज्ज्वल किये बिना नहीं रहता। इंटोंपर भी बारीक काम किस प्रकार किया जा सकता है, इसका सारे भारतमें सम्भवतः यही एक ज्वलन्त उदाहरण है। ईटें १८४८ इंचकी हैं। इस तरहके कामका प्रचार गुप्तकालमें व्यापक रूपसे था। मन्दिरके बरामदे में सूर्य, शंकर, पार्वती, सरस्वती एवं कामसूत्रसे सम्बन्धित कुछ मूर्तियाँ अवस्थित हैं । इस देवालयके समीप ही रामदेवालय भी बहुत ही दुरवस्थामें विद्यमान है । यद्यपि यह भी सम्पूर्ण इंटोंका ही बना हुआ था, पर वर्तमान कालमें शिखरके कुछ भागको छोड़कर केवल इंटोंका ढेर-भर अवशिष्ट है । प्रेक्षकोंका ध्यान इस ओर शायद ही कभी जाता हो। सिरपुरसे कउवाँझर जानेवाली सड़कपर किवाँचके भीषण अरण्यमें एक विशाल स्तम्भपर एक भव्य पुरुष-प्रतिमा हाथमें खड्ग लिये हुए अवस्थित है । उसका चेहरा भव्य, आकर्षक तथा विविध प्रकारके कलचुरि-शिल्पस्थापत्यमें पाये जानेवाले आभूषणोंसे इसमें कुछ भिन्नत्व है। मालूम होता Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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