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________________ ३८० खण्डहरोंका वैभव एक-एक भाग तीन-तीन विभागोंमें विभाजित है। बाई ओर नृसिंह, वाराह, वामन, राम, लक्ष्मण (धनुर्धारी) आदि अवतारों एवं तीनों लाइनें सुन्र शिल्पोंसे अलंकृत हैं, जिनमें एक गृहस्थ-युगलकी मूर्ति स्थूल उदर, लघुचरण, गलेमें यज्ञोपवीत और आभूषणोंमें भक्ति-सूचक माला धारण किये हुए हैं। विदित होता है कि यह कोई भक्त ब्राह्मणको प्रतिकृति होगी। मूर्तिके परिभागमें भामण्डल-प्रभावली स्पष्ट है । तन्निम्नभागमें लघुबयस्क बालक खड़ा है। एक वृक्षके नीचे स्त्री-पुरुष सुन्दर भावोंको व्यक्त करते खड़े हैं। दाहिनी ओर गन्धर्वो की प्रतिमाएँ विविध वाद्यों सहित उत्कीर्णित हैं। कहीं-कहीं कामसूत्र विषयक प्रतिमाएँ खुदी हैं । तोरणपर विविध प्रकारके बेल-बूटे हैं, जो गुप्तकालीन कलागत प्रभावके सूचक हैं । तोरणके ऊपर अतीव सुन्दर और चित्ताकर्षक भगवान् विष्णुकी शेषशायी प्रतिमा दृष्टिगोचर होती है। नाभिगत कमलपर ब्रह्माजी और चरणोंके निकट लक्ष्मी अवस्थित हैं। पासमें वाद्य लिये गन्धर्व खड़े हैं । मूर्ति कलापूर्ण होते हुए भी एक आश्चर्य अवश्य उत्पन्न करती है कि लक्ष्मणके प्रधान मन्दिरके गर्भगृहोपरि ऐसी प्रतिमा क्यों खुदाई गई ? तोरणका पाषाण लाल है, और संरक्षणाभावसे नष्ट हो रहा है। प्रतिमाओंके केश-विन्यासपर गुप्तोंका प्रभाव स्पष्ट है। कामसूत्रके आसन भी तोरणमें उत्कीर्यित हैं। मन्दिरके मुख्यगृहमें जो मूर्ति यिराजमान है, वह पँचफने साँपपर अधिष्ठित है। कटिमें मेखला, गले में यज्ञोपवीत, कर्णों में कुण्डल, बाजूबन्द और मस्तकपर लपेटी हुई जटा, उत्फुल्ल वदनवाली प्रतिमा २६४१६ इंच आकारकी है। यह प्रतिमा किसकी होनी चाहिए, यह एक प्रश्न है। कहा तो जाता है कि यह लक्ष्मण की है, परन्तु मैं इससे सहमत नहीं। वास्तुशास्त्रानुसार मन्दिरके इतने पिशाल गर्भगृह और मूलद्वारको देखते हुए, सहजमें ही अनुमान किया जा सकता है कि उक्त प्रतिमा कम-से-कम इस मन्दिरकी तो अवश्य हो नहीं है। सम्भव है कि मूल प्रतिमा गायब हो जानेसे किसीने स्थानपूर्तिके Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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