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________________ खण्डहरोंका वैभव सप्ताह मुझे यहीं व्यतीत करना पड़ा। इस समय मुझे कलचुरियों द्वारा विकसित तक्षण-कलाके अवशेषोंको व मूर्तियोंको भलीभाँति देखनेका अवसर मिला । इतना पश्चात्ताप मुझे अवश्य हुआ कि जिन कलात्मक अवशेषोंका भावग्राही वर्णन मैंने अन्यत्र पढ़ा था, वे वहाँ न मिले । जब कभी ग्रामीणों द्वारा आकस्मिक खुदाई में अवशेष या मूर्तियाँ निकलती हैं, तब बे लाकर कहीं व्यवस्थित रूपसे रख देते हैं, और बुद्धिजीवी या व्यवसायी प्राणी मौका देखकर उठा लाते हैं। अभी भी यह क्रम जारी है। जहाँतक स्थापत्यका प्रश्न है, वह कलचुरि कालसे सम्बन्ध जोड़ सके, ऐसा एक भी नहीं है । अवशेष अवश्य इतस्ततः बिखरे पड़े हैं। सबसे अधिक ललित कलाकी सामग्री मिलती हैं-विभिन्न मूर्तियाँ । बालसागरके किनारेपर, त्रिपुरीमें प्रवेश करनेके मार्गपर जो मन्दिर है, उसमें तथा सरोवरके मध्यवर्ती देवालयकी दीवालोंमें, कलचुरि कालकी अत्यन्त सुन्दर कृतियाँ भद्दे तरीकेसे चिपका दी गई हैं। खैरमाई (बड़ी) के स्थानपर ध्यानी विष्णु, सलेख कार्तिकेय आदि देवोंकी मूर्तियोंके अतिरिक्त पश्चात् भागमें सैकड़ो मूर्तियोंके सर एवं बस्ट पड़े हैं । ग्राममें हरि लढ़ियेके घरके सामने विराट वृक्षके निम्न भागमें भी मूर्तियाँ पड़ी हैं। इन पर लेख भी हैं । इसी झाड़के जड़ोंकी दरारों में देखनेपर मूर्तियाँ फँसी दिखलाई पड़ती हैं। छोटी खैरमाई एवं ग्राममें कई स्थानोंपर कुछेक घरोंमें मूर्तियाँ पाई जाती हैं । इनमेंसे कुछेक कलाको दृष्टि से भी मूल्यवान् हैं । नगरीके मध्य भागमें त्रिपुरेश्वर महादेवकी मूर्ति के अतिरिक्त अन्य प्रतिमाएँ भी विद्यमान हैं। लोगोंका ऐसा ख्याल है कि यहाँ किसी समय मंदिर था, जैसा रुख वर्तमानमें है, उससे तो कल्पना नहीं होती, कारण कि मूर्तियाँ गहरे स्थानपर रखी गई हैं। इनकी रचनाशैलीसे कलचुरि कालकी प्रतीत होती हैं। उनके समयमें यदि स्वतंत्र मन्दिरका अस्तित्व होता, तो किसी न किसी ताम्र या शिला-लेखमें इसका उल्लेख अवश्य ही रहता, क्योंकि कलचुरि स्वयं शैव थे, अतः त्रिपुरेश्वर महादेवके मन्दिरका स्पष्ट उल्लेख Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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