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________________ जमा दीगर है। उसके निम्न है जलाशयके सेतकर कार्तिकेय, है । बीचमें भागमें पाषाको निर्माणका मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व ३४५ शिल्प तथा पार्वतीकी मूर्तियाँ हैं जलाशयके सेतुकी निर्माण-कला अवश्य विचारणीय है। उसके निम्न भागमें पाषाण रोपकर, ऊपर शिलाएँ जमा दी गई हैं । बीचमें किसीके सहारे बिना ही सेतु टिका हुआ है । कार्तिकेय, गणेश, शिव-पार्वती, सूर्य, कृष्ण और सरस्वती आदिको प्रतिमाएँ बड़ी ही महत्त्वपूर्ण हैं । ये जलाशय-तटपर पड़ी हुई हैं । संपूर्ण भद्रावतीको पुरातन अवशेषोंकी महानगरी कहा जाय, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । यदि यहाँ शोध एवं खनन कार्य किया जाय तो निस्संदेह अनेक रत्न निकलनेकी संभावना है। त्रिपुरी : जबलपुरसे ७वें मील पश्चिमका तेवर ही प्राचीन त्रिपुरी है । यही महाकोसलकी राजधानी थी । इसकी परिगणना डाहल राज्यान्तर्गत होती थी । इसका इतिहास बहुत प्राचीन है, ईस्वी पूर्व ३रीशतीकी मुद्राओंमें तथा परिव्राजक महाराजा संक्षोभके सन् ५१८वाले ताम्रपत्रमें त्रिपुरीका उल्लेख दृष्टिगोचर होता है । लिंग एवं पद्मपुराणमें भी इस स्थानकी चर्चा है । कलचुरियोंने नवीं शतीमें इसे राजधानी बनाकर त्रिपुरीके महत्त्वको द्विगुणित कर दिया । इनके समयमें त्रिपुरीका बहुमुखी वैभव भारतव्यापी हो चुका था। शासकोंका बौद्धिक स्तर निस्सन्देह उच्च कोटिका था। शिल्पकलाके तो वे परमोन्नायक थे हो, परन्तु उच्च कोटिके साहित्यिक कलाकारोंका सम्मान करनेके लिए भी सोत्साह प्रस्तुत रहते थे। महाकवि राजशेखर भी कुछ दिनोंतक त्रिपुरीमें रहे थे। तात्पर्य कि यहाँकी साहित्यिक परम्परा बड़ी ही विलक्षण थी। यहाँतक कि राजनैतिक इतिहासकी सामग्री स्वरूप जो ताम्रपत्र उपलब्ध हुए हैं, एवं पत्थरोंपर जो लेख खुदे हैं, उनका साहित्यिक महत्त्व भी कम नहीं। ___ मुझे दो बार त्रिपुरी जानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है । १६४२ में त्रिपुरीको मुझे दो घंटे ही देने पड़े थे। किन्तु फरवरी १९५०का चतुर्थ Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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