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________________ मध्यप्रदेशका बौद्ध-पुरातत्व थी, इसीसे उसकी विशालताका अनुमान किया जा सकता है । मुद्राभूमिस्पर्श-तारा और अवलोकितेश्वरके दो प्रतिमाखण्ड भी--जो लेखयुक्त हैं-विद्यमान हैं। समीप ही किवाँचका जंगल पड़ता है, इसमें भी ऐसी ही तीन मूर्तियौं पड़ी हुहै हैं । एक तो स्तम्भपर ही उत्कीर्णित है। कलाकारने इस लघुतम प्रतीकमें बुद्धदेवके जीवनकी वह घटना बताई है, जो सर्वप्रथम राजगृह जानेपर घटी थी। विशेषकर हाथीका बुद्धदेवके चरणों में सर्वस्व समर्पण तो बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है। महानदीके तटवर गन्धेश्वरमहादेवका एक मन्दिर है। इसमें भी बुद्ध-प्रतिमाओंका जो संग्रह है, वह निस्सन्देह कलाकी दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आधे दर्जनसे अधिक प्रतिमाएँ तो भूमि-स्पर्श मुद्राकी ही हैं, जो काफ़ी विशाल और उज्ज्वल व्यक्तित्वकी परिचायक हैं। उनमेंसे कुछेकपर खुदे हुए लेख व अलंकारपूर्ण प्रभामंडलमे यही ज्ञात होता है कि उनकी आयु तेरह सौ वर्षसे कम नहीं है। गुप्तकालीन प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है । सूचित प्रतिमाओंमें बोधिवृक्षकी पत्तियाँ अत्यन्त कुशलतापूर्वक व्यक्त की गई हैं। चीवर अधिकांशतः पारदर्शी हैं--प्रतिमाओंके निम्न भागमें नारी-मूर्ति है, जो पृथ्वीका प्रतीक है। एक शिलापट्टका उल्लेख बड़े खेदके साथ करना पड़ रहा है कि यह जितना महत्त्वपूर्ण एवं इस प्रान्तमें अन्यत्र अनुपलब्ध है, उतना ही अरक्षित और उपेक्षित भी है । भगवान् बुद्धदेवकी मार-विजयवाली घटनाएँ चित्रित तो मिलती हैं, किन्तु पत्थरोंपर खुदी हुई बहुत ही कम । यहाँ के मंदिरमें छः फुट लम्बी ३॥ फीट चौड़ी (६४३॥) प्रस्तर शिलापर मारविजयकी घटनाको रूपदान देकर, कलाकारने न केवल अपने सुकुमार व भावपूर्ण हृदयका ही परिचय दिया है वरन् उससे कलाकारकी चिरकालीन दीर्व तपस्याका भी अभिबोध होता है । शृंगार एवं शान्तरसका एक ही स्थानपर ऐसा समन्वय अन्यत्र कमसे कम बौद्ध-कला-कृतियोंमें कम दृष्टिगोचर होगा। कहाँ तो उद्दीपित सौन्दर्ययुक्त नारीमुख एवं कहाँ साधकको सम्पूर्ण विरागता और प्राकृ Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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